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अनन्त जीवन के स्वामी (विचार मुक्तक)
Oराजकिशोर जैन
शाश्वत अकार्यकारण निष्क्रिय प्रकाश । संसरण निष्क्रान्त सदानन्द वीतराग परम धीर परम वीर न झुके
न रुके
महावीर स्वामी स्वामी अपने चैतन्य 'स्व' के ज्ञाता निज के पर 'स्व' जिसमें झलकता किन्तु प्रवेश न पाता किंचित् । पर की छाया पर का प्रभाव बाहर रह जाता जिसको न छूता किंचित् । महावीर स्वामी स्वामी अपने अनन्त जीवन के सतत प्रवाह के
परम की ओर। कर्म उदय का स्वामी पुद्गल, अज्ञानी तन्मय होता। भैंस का स्वामी भैंस कर्म का स्वामी अज्ञानी
भूत
वस्तु
वर्नमान भावी परिणमन भासित होता क्रम नियमित सुव्यवस्थित टंकोत्कीर्णवत् प्रतएव ज्ञाता मात्र स्थिर रहते। स्वामी महावीर ध्रुव
सहज परिणमन चक्र में भैंसे की भांति सींग लगता, चक्र न रुकता । सींग टूटते बहुत दुःख से व्याकुल होकर चिल्लाता, निर्जन वन का रोना धोना कोई न सुनता।
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