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इसी लक्ष्य को ध्यान में रख कर इस तरह का साहित्य प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है जिससे अवश्य ही जनमानस का प्राणीमात्र के प्रति दया व करुणा का भाव जागृत होगा ।
अतः इस सारे निवेदन के साथ आपसे हम निम्न अपेक्षायें करते हैं
1. प्रसाधन या साज सज्जा की ऐसी वस्तुनों का आप स्वयं उपयोग न करें, जिनसे क्रूरता पूर्ण हिंसा को प्रोत्साहन मिलता हो ।
3. घोड़ा बेल ऊंट व भैंसे प्रादि वाहन में जोते जाने वाले जानवरों पर जरूरत से ज्यादा भार लादने व बेरहमी से उन पर डंडे बरसाने जैसी क्रूरता को रोकने के लिए अज्ञानी लोगों को समभावें ।
4. आपके सम्पर्क में आने वाले ऐसे व्यक्तियों के मानस को शांति और धैर्य पूर्वक बदलने का प्रयास करें जो मांस मछली आदि का उपयोग करते हैं ।
2. ऐसी वस्तुओंों के उपयोग के लिये अन्य लोगों 10 निरीह पशु-पक्षियों के क्रूरता के निवारण हेतु को भी निरुत्साहित करें। किये जाने वाले हर तरह के प्रयास में तन, मन और धन का समर्पण करने को सदैव तत्पर रहे ।
5. राजस्थान पशु एवं पक्षी निषेध अधिनियम संस्था 21 सन् 1975 ( राजस्थान राज्य पत्र 24 अप्रेल 1975) के तहत सार्वजनिक धार्मिक स्थानों पर बलि करना निषिद्ध है । इस नियम का उल्लंघन करने वाले अपराधी के लिए 3 मास तक की कैद अथवा 500/रु० जुर्माना का प्रावधान है। अपने अपने क्षेत्र में इस कानून का दृढ़तापूर्वक पालन करायें ।
6. मुंह के स्वाद मात्र के लिए सुधरों को जिन्दा अग्नि में भून डालने जैसे अमानवीय कृत्यों को रोकने के लिये जनमानस तैयार करें व ऐसे प्रयासों में योगदान करें ।
7. आवश्यकता होने पर श्राप स्वयं शुद्ध शाकाहारी
होटल की सामग्री का ही प्रयोग करें। इससे शाकाहार को प्रोत्साहन मिलेगा ।
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8. विदेशी प्रवास में इस सम्बन्ध में अधिक जागरूक रहे तथा भारतीय संस्कृति के गौरव को कायम रखने में मददगार बनें ।
9. विदेशों से पाये हुए मेहमानों के लिए शुद्ध
शाकाहारी भोजन के उपयोग को परम्परा बनावें और इस प्रकार माँसाहार को निरूत्साहित करें।
11.
राजस्थान राज्य शोप एण्ड अस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत सप्ताह में एक दिन अन्य दुकानों की तरह मांस विक्री की दुकाने भी बन्द रखी जाने के नियम का दृढ़ता से पालन करायें ।
माँसाहार पर प्रबुद्ध वर्ग की सम्मतियां
मांसाहार से अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
डा. टाल्वाट
मांसाहार से धमनियां मोटी हो जाती है, बहुमूत्र तथा गुर्दे की बीमारियां हो जाती है।
मिशिगन वि. वि. के. प्रो. न्युवर्ग उपान्ना-प्रदाह मांसाहारियों में मिलता है । मासांहार से प्रामाशय और पक्वाश के व्रण भी अधिक होते हैं, ये ही भागे चलकर केन्सर के हेतु बन जाते हैं।
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- डा. त्रिलोकीनाथ
यदि पृथ्वी पर स्वर्ग का साम्राज्य स्थापित करना है तो पहले कदम के रूप में मांसाहार भोजन करना सर्वथा वर्जनीय करना होगा।
मोरिस. सी. कोपली
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