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विचार स्वतः ही पाता है कि आज भारत किधर हारी को रोग से बचने व लड़ने की शक्ति क्षीरस जा रहा है। आज तो इन वस्तुओं के उपयोग के हो जाती है। भाजकल स्वाद, ताकत और फैशन लिए लाखों रुपया प्रचार व प्रसार में व्यय किया के लिए मांस का उपयोग होता हैं । पर यह जा रहा है। मांस प्राप्त करने के लिए की जाने नितांत भ्रमित धारणा है। एक अन्न से अनेक वाली क्रूरता, दिल दहला देने वाली दर्दनाक प्रणाली प्रकार के स्वाद की वस्तुएँ बनाई जा सकती है। अहिंसा प्रेमियों के लिए प्राज अधिक विचारणीय पौष्टिकता की दृष्टि से ग्राज के विज्ञान ने शाकाहार बनी है।
कों मांसाहार की अपेक्षा श्रेष्ठ सिद्ध किया हैं।
आज के होटलों में व क्लबों में, पार्टियों आदि में बीमार और गर्भधारण किये हुए जानवरों
विशेष प्रकार के शाकाहारी व्यंजन बनाकर परोसे
जावें तो जन्मजात मांसाहारी भी शाकाहारी का सरकारी कानून होते हुए भी संहार क्या मांस । के उपयोग करने वालों में नई बीमारीयों का
व्यंजन पसन्द करेगे यह निश्चित है, इससे फैशन प्रवेश नहीं करता ?
का भूत भी भाग जावेगा।
अाज विदेशों में शाकाहार के प्रति खूब रूचि कुछ अनजान और अज्ञानी व्यक्तियों द्वारा बढ़ी है। अनेक संस्थायें बनी है। अमेरिका में सूबर को मारने का अमानवीय कार्य क्या दिल को
सबजियों के सलाद व फलाहार की ओर काफी नहीं दहला देता?
झुकाव हुमा है। साधारण अमेरीकी भी स्वेच्छा
से कई दिन मांस का उपयोग नहीं करते। मांस भक्षण से शरीर बलवान बनता हैं, यह नितांत अज्ञानपूर्ण धारणा है। प्रोटीन व चर्बी डेनियल पी• हाकमैन ने तो यहां तक कहा के लिए मांस सेवन को अनिवार्य मानना हेय और है कि अमेरिका में शाकाहार इतना विस्तार पा घृरिणत है । मांसाहारी व्यक्ति से शाकाहारी व्यक्ति चुका है कि मांस विक्रेता अपने उत्पादनों के लिए मानसिक व शारीरिक दृष्टि से अधिक स्वस्थ विज्ञापन, प्रलोभन देने को बाध्य हुए हैं। पर वे होता है।
लोग जब हमारे देश में आकर शाकाहार के बदले
मांसाहार की बढ़ती हई वत्ति देखते हैं तो आश्चर्य पालतू सूअर जमीन की हर गन्दी चीज खाते करते हैं। हैं। यहां तक कि आदमी और पशु का मल-मूत्र भी । संसार का यह सबसे गन्दा पशु माना जाता मांसाहार की प्रवृत्ति जब तक कम नहीं होगी, है । इन सुअरों के मांस का भी मांसाहारी उपयोग तब तक जानवरों के प्रति होने वाली क्रूरता भी करते हैं। पशुओं के मांस के पित्त सम्बन्धी तत्व कैसे कम होगी ? रक्त चाप, केंसर, गठिया और रक्त नलियों में जभाव, आदि भयंकर बीमारियां पैदा करते हैं। मुह के स्वाद के लिये तो यह सब कुछ होता मांसाहार से युरिक एसिड तथा अन्य प्रकार के ही है, पर अहिंसा प्रेमी भी प्राज पशु-पक्षियों के विकार पैदा होते हैं। पाचन प्रणाली में सड़ांध प्रति बढ़ने वाली क्रूरता में अनजाने ही सहयोगी होकर जब यह रक्त मिलता है तब रक्त दूषित हो बन रहें हैं । आज ऐसी अनेक वस्तुएँ हम अपने जाता है और ये सब रोग निर्मित होते हैं । मांसा- व्यवहार में ला रहें हैं जो हिंसा में निमित्त हैं।
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