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जय महावीर !
चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को महावीर जन्मे
सत्य हिंसा की मूर्ति
संयमी
त्यागी
अनेकान्ती
आत्म-निरीक्षक |
महावीर ने साधना की
और बने
आत्म ज्ञान के प्रकाश पुंज
राग-द्वेष-मोह-विवर्जित,
निर्भय,
समदृष्टि
उपसर्गातीत ।
महावीर
आपके मार्ग का पथिक
कटोती
उलझनों से प्रतीत
होता चलता है वह अपने में
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श्रीमती सुशीला देवी जैन सरस्वती, धर्मालंकार
अपने को खोज
अपनी अनन्त ज्ञान निधि का
स्वामी बन जाता है । मोक्ष कहीं दूर नहीं
कदम कदम पर
एक नया उत्साह नया श्रानन्द
नयी मुक्ति
उसका वरण
करती चलती है ।
प्रभो !
आपको देखने समझने पर
सहज ही
ज्ञान टूटता है
और कदम
आपके पथ पर
बढ़ने लगते हैं
व्यक्ति में छिपा
उसका अपना महावीर
जाग उठता है ।
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लालजी सांड का रास्ता
जयपुर ।
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