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________________ जय महावीर ! चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को महावीर जन्मे सत्य हिंसा की मूर्ति संयमी त्यागी अनेकान्ती आत्म-निरीक्षक | महावीर ने साधना की और बने आत्म ज्ञान के प्रकाश पुंज राग-द्वेष-मोह-विवर्जित, निर्भय, समदृष्टि उपसर्गातीत । महावीर आपके मार्ग का पथिक कटोती उलझनों से प्रतीत होता चलता है वह अपने में Jain Education International 17 श्रीमती सुशीला देवी जैन सरस्वती, धर्मालंकार अपने को खोज अपनी अनन्त ज्ञान निधि का स्वामी बन जाता है । मोक्ष कहीं दूर नहीं कदम कदम पर एक नया उत्साह नया श्रानन्द नयी मुक्ति उसका वरण करती चलती है । प्रभो ! आपको देखने समझने पर सहज ही ज्ञान टूटता है और कदम आपके पथ पर बढ़ने लगते हैं व्यक्ति में छिपा उसका अपना महावीर जाग उठता है । For Private & Personal Use Only लालजी सांड का रास्ता जयपुर । www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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