________________
'ख' वर्ग में प्रथम घोषितं निबन्ध
महावीर का कर्म सिद्धान्त
इस पुण्यधरा भारत ने अनगिनत ऐसे ज्योति प्रज्ञों को जन्म दिया है जो अपने तेजोबल से न केवल स्वयं प्रकाशित हुये अपितु जिन्होंने अपने ज्ञान के निर्मल प्रकाश से सम्पूर्ण विश्व को प्राप्लावित किया । ऐसे ही ज्योति प्रज्ञों में से भगवान महावीर भी एक हैं जिनका बनाया गया मार्ग 2500 वर्षो बाद भी जगत के प्राणियों को शाश्वत, अखण्ड और कर्म बन्धन से मुक्ति या मोक्ष की प्राप्ति कराने में उतना ही सक्षम और समर्थ है, जितना पहले था और रहेगा ।
भगवान महावीर के बनाये गये सिद्धान्तों की सुखद मन्दाकिनी लोक कल्याण को ही पोषित नहीं करती अपितु इसकी सुखद धारा जीव को श्राध्यात्मिकता से भी आप्लावित करती है । विज्ञान की चकाचौंध और फैशन परस्ती की अन्धी दौड़ में दिग्भ्रमित जनता को भगवान महावीर ने कर्म का संदेश दिया है । जहां छीनना, चोरी और लूटना ( काला बाजारी) ही व्यक्ति का बाना बन गया है । व्यक्ति के नैतिक मूल्यों का विघटन हो रहा है और कर्म के प्रति अनास्था उभर रही है । ऐसे में :
महावीर तेरे कर्म सन्देश, युग-युग बोध जगायेंगे । सुख-दुख में उलझे लोगों को, मुक्तिबोध दे सुलझायेंगे ।
Jain Education International
कुमारी मंजू झाड़चूर XI B
श्री श्वे० जैन सुबोध बालिका उ० मा० विद्यालय जयपुर
इस मुक्ति बोध के लिये न में अपितु जैन धर्म में भी जो जैसा करता है वह वैसा
केवल भारतीय दर्शन कर्म का सिद्धान्त है । भरता है ।
कर्म का अर्थ :- कर्म शब्द का अर्थ सामान्यतः कार्य प्रवृत्ति या क्रिया से किया जाता है । कर्म काण्ड में यज्ञ आदि क्रियायें कर्म रूप में प्रचलित हैं । पौराणिक परम्परा में व्रत, नियम आदि कर्म रूप माने जाते हैं ।
कर्म का प्रकार :- जैन
परम्परा में कर्म दो
)
प्रकार का माना गया है ( 1 द्रव्य कर्म और (2) भाव कर्म । कर्म जाति का पुद्गल अर्थात जड़त्व विशेष जो कि आत्मा के साथ मिलकर कर्म रूप में परिणत हो जाता है द्रव्य कर्म कहलाता है और राग, द्वेषात्मक परिणाम को भाव कर्म कहा गया है ।
भगवान महावीर के अनुसार कर्म का सम्बन्ध नादि है । जब तक प्राणी के पूर्वोपार्जित समस्त कर्म नष्ट नहीं हो जाते और नये कर्मों का उपार्जन बन्द नहीं हो जाता तब तक उसकी भव बन्धन से मुक्ति नहीं हो पाती । इसके पश्चात ही आत्मा को मुक्ति या मोक्ष की प्राप्ति होती है क्योंकि एक बार समस्त कर्मों का विनाश हो जाने के पश्चात नवीन कर्मों का उपार्जन नहीं होता । भगवान
5/1
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org