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और यह कहकर वह बाहर चला गया ? यह है होने पर ही यह फैली हुई धारणा साकार होगी हमारी भावी पीढी का हाल ।
कि जैन बन्धु, सहिष्णु, समताभावी और संयमी
होता है । वह तत्त्ववेत्ता और संतोषी होता है । धर्म के सिद्धान्त कितने भी महान हों, मगर
गुणग्राही होता है । पर निंदा दुसग्रह से बहुत दूर उन्हें समझाने वाले और इन पर चलने वाले पैदा
प्राणी मात्र का मित्र होता है। दुखी और पथभ्रष्ट हो । तभी तो उनकी महानता प्रकट होगी। हम
लोगों को देखकर वह द्रवीभूत हो जाता है । इसका सिद्धान्तों की महानता की डींग भले ही मारते
प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि जनसंख्या के औसत से फिरे, जव तक जन ही उनपर नहीं चलेंगे तब दूसरे जैन अपराधी कम ही होते हैं। इसीलिये एक बार लोग उन पर कैसे चलेंगे और कैसे हमारा अनुकरण राष्टपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि "जन करेंगे । ईसाइयों में कितनी सेवा की भावना है। जीवन एक अादर्श और पवित्र जीवन है।" उनके द्वारा संचालित अस्पतालों में जाकर देखें; बीमारों के प्रति उनका कितना मधुर और दयाद्र अत: मेरा सुझाव है कि वृद्ध जन प्रेम के साथ व्यवहार होता है। ईसाई बन जाने पर वे किस युवकों को आगे लावें । उनको और बच्चों को कदर उनके जीवन और जीविका के साधन जुटाते जैन धर्म की शिक्षा का महत्त्व समझावें और जैन हैं, यही कारण है कि उनकी संख्या निरन्तर बढ़ धर्म को पढ़ने की उनमें रुचि पैदा करें। रही है। वे अपने यीशु के प्रति कितने प्रास्थावान
(2) अखिल विश्व को जैन बनाने का आदर्श है 'प्रार्थना के समय गिरजाघरों में कितनी तल्लीनता से शामिल होते हैं। मुसल्मानों को
तो कायम रखें, परन्तु फिलहाल जैनियों को तो
- जैम बनाये रखें। देखिये, वे सरकारी मुलाजिम है या व्यापारी है। नवाज के टाइम पर सब काम छोड़ उसमें शरीक (3) रात्रि भोजन करने, अनछने जल पीने की होंगे। शुक्रवार के दिन तो वे बडी लगन से नमाज बुराइयों को-एवं अण्डा शाकाहार है, इस क्रान्ति अदा करते ही हैं। तभी सरकार भी झुकती है को दर करने को जिन-दर्शन नित्य प्रति करने के और उन्हें उस समय का सवेतन अवकाश महत्त्व को प्रकट करने वाले छोटे-छोटे किन्तु सुन्दर देती है।
ट्रेक्ट छपवाकर सर्वत्र वितरण करावें। अभी ऐसे कई प्रदेश हैं, जहां महावीर जयन्ती
(4) जहां मन्दिर है, वहां मन्दिर निर्माण न और अनंत चतुदर्शी का सार्वजनिक अवकाश राज्य
करे, लेकिन जहां नहीं है, वहां अवश्य एक जिन स्तर पर नहीं होता है, ऐच्छिक अवकाश रहता
मन्दिर चाहे छोटा ही हो मगर भव्य व आकर्षक है । उस दिन भी जैन अपनी धर्म निरपेक्षता दिखाने
निर्माण करावें। कार्यालयों में जाते हैं, व्यापारी व्यापार प्रतिष्ठान
(5) एक जैन बैंक बनाया जावे। जहां से बन्द नही करते हैं ? कहां है धर्म के प्रति वह पुरुषार्थी व्यक्तियों को जो धनाभाव के कारण प्रास्था और प्रेम, कहां है, परोपकार की भावना
___ अभावों में जीवन निर्वाह कर रहे हैं उन्हें अत्यल्प और सहधर्मी के प्रति वात्सल्यता ।
व्याज में ऋण दिये जावें। व्यापार में एवं नौकरी ___ इन स्थितियों के होने का एकमात्र कारण दिलाने में उनको सहयोग दें। धार्मिक शिक्षा का न होना है । अत: गांव-गांव में (6) दहेज दानव की समाप्ति के लिये जन धामिक शिक्षा का प्रसार होना चाहिये । शिक्षित अान्दोलन करें। -.
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