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श्रवणबेलगोल का धार्मिक एवं सामाजिक महत्त्व
.डॉ० नरेन्द्र भानावत एसोसियेट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
बाहुबली में सूरमा और संत का मेल है । चन्द्र गप्त और भद्रबाहु, चामुण्डराय और प्रा. नेमीचन्द्र-श्रवणबेलगोल मानो कह रहा है जैन संस्कृति सूरमाओं और संतों की संस्कृति है।
-सम्पादक
श्रवणबेलगोला दक्षिण भारत में मैसूर के श्रवणबेलगोला में तीन शब्द हैं 'श्रवण' अर्थात् हासन जिले में एक अत्यन्त प्राचीन, विश्व-विख्यात श्रमण, 'बेल' अर्थात् सफेद, गोला अर्थात् सरोबर । गौरवपूर्ण तीर्थस्थल है। इसके साथ शक्ति और इसका अर्थ हुअा जैन साधुओं का सफेद तालाब । भक्ति का, शूरवीरता ओर अत्मा-जयता का तथा इस अर्थ से इस स्थान की निर्मलता, पवित्रता, संत और सूरमा का प्रेरणादायी इतिहास जुड़ा हुआ शुद्धता और प्रशान्तता सूचित होती है। है। कहा जाता है कि ईसा के तीन सौ वर्ष पूर्व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में उत्तर श्रवणबेलगोला की जो विश्वव्यापी ख्याति है, भारत में जब बारह वर्ष का दुष्काल पड़ा तो उसका मुख्य कारण है यहां की गोम्मटेश्वर बाहुअन्तिम क्षुतकेवली प्राचार्य भद्रबाहु (कुछ इतिहास- बली की 57 फुट ऊंची विशाल भव्य प्रतिमा । कारों के अनुसार निमितज्ञ द्वितीय भद्रवाहु) के इसके निर्माण के सम्बन्ध में कहा जाता है कि बाहुनेतृत्व में बारह हजार जैन साधुओं ने यहां आकर बली तीर्थकर अषभदेव के पुत्र व भरत चक्रबर्ती के तप और ध्यान की साधना की । स्वयं सम्राट भाई थे । राज्य के लिए युद्ध होने पर भयंकर जनचन्द्रगुप्त ने जैन दीक्षा अंगीकृत कर अपने गुरु संहार से बचने के लिए दोनों भाई निर्णायक द्वन्द्व भद्रबाहु की सेवा की और दोनों ने इसी स्थल पर युद्ध करने पर सहमत हो गये। दोनों में दृष्टियुद्ध, समाधिपूर्वक देहोत्सर्ग किया। दोनों के स्मारक जलयुद्ध, बाहुयुद्ध हुए पर सब में भरत पराजित यहां प्रतिष्ठित हैं। यह स्थान अनेक प्रभावशाली हए । अन्त में उन्होंने बाहबलि पर चक्र चलाया
आचार्यों, तपस्वियों, राजाओं, सामन्तों, सेना. और बाहुबलि ने उन पर मुष्टि प्रहार के लिए हाथ पतियों, मंत्रियों, श्रावक-श्राविकाओं और धार्मिकों उठाते हुए सोचा-राज्य जैसी तुच्छ चीज के लिए के तप. त्याग, ध्यान, दान और आत्मजागरण की मुझे भ्रातृवध जैसा दुष्कृत्य नहीं करना चाहिए । भावना से पवित्र और पूजित है।
भगवान् अषभ के सन्तानों की परम्परा हिंसा की
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