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ने अपने शिष्य एलाचार्य श्री को समस्त त्यागी- रहा था और इधर इस विध्यगिरि क्षेत्र में सब मूनि संघ एवं विशाल जनमेदिनी के समक्ष धर्मो को विश्वधर्म में, आचरण में समन्वित कर 'सिद्धान्त-चक्रवर्ती' पद से सुशोभित किया। सिद्धान्त चक्रवर्ती एलाचार्य मुनिश्री की विश्वधर्म
उद्घोषणा प्रथम देशना के रूप में निःसृत हो रही महामस्तकाभिषेक महोत्सव के अन्तर्गत थी। जिनवाणी की यह भव्य आराधना सभी विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इन्हीं सज्जना के श्रुतिविलास में
सज्जनों के श्र तिविलास में वास्तविक प्राध्यात्म के कार्यक्रमों की शृखला में एक अनूठा व अवि- स्वरों को गुजायमान कर रही थी। स्मरणीय कार्यक्रम रहा सर्वधर्म सम्मेलन । महामस्तकाभिषेक मंच पर ऐसे सम्मेलन का आयोजन
चामुण्डराय सभा-मण्डप के सामने थानिश्चित ही आयोजकों की सूझ बूझ व उदार
भद्रबाह मण्डप-सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रंगस्थली। दृष्टिकोण के परिचायक था। इस अवसर पर
यहाँ प्रतिदिन रात्रि में विभिन्न संस्थाओं द्वारा सनातन धर्म के प्रतिनिधि पेजावर मठ (उडीपी)
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रायोजन हो रहे थे जिनमें के गुरु स्वामी विश्वेशतीर्थ, धर्माचार्य बाल गंगाधर
कर्नाटक सरकार, निकलंक मण्डल-इन्दौर, श्रीराम स्वामी, सिख धर्म के अनुयायी मेजर जनरल उबान,
भारतीय कला केन्द्र-देहली प्रमुख थे। श्री राम मुनि सुशील कुमारजी,धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेगड़े,
भारतीय कला केन्द्र द्वारा प्रस्तुत भरत-बाहुबली
बैले अत्यन्त मनमोहक व मार्मिक था। साधू संघ आदि उपस्थित थे। चामुण्डराय सभा मण्डप विभिन्न धर्म-धारानों का संगम-स्थल हो
___ इसके कुछ दूरी पर ही एक प्रदर्शनी थी, जहाँ रहा था । विविध धर्मों की धाराये बह रही थीं।
भारत के अनेक प्रान्तों की विभिन्न वस्तुओं की जिनकी सतरंगी आभा के बीच एलाचार्य मुनिश्री
हाटे लगी थीं। यहीं पर एक धार्मिक-प्रदर्शनी का विद्यानन्द जी सर्य समान पालोकित हो रहे थे।
मण्डप था जिसमें निर्जीव गुड़ियों के माध्यम से विविध धर्मों के प्रतिनिधियों द्वारा अपने धार्मिक
भरत-बाहबली की जीवन-गाथा को बहत ही विचारों की अभिव्यक्ति के पश्चात् एलाचार्य
सजीव-जीवन्त किया गया था। काच की शीशियों मुनिश्री का मंगल-प्रवचन हुआ जिसमें मुनिश्री ने
से समवशरण, मानस्तंभ की रचना अत्यन्त भव्य कहा-धर्म प्रत्येक प्रात्मा में विद्यमान है, यह थी। इस मण्डप में श्रद्धा एवं कला का प्रत्यन्त आत्मा का स्वभाव है, प्रात्मा की निधि है। शब्द
मनोहारी संगम था। रूपान्तर से शुद्ध आचरण धर्म है-ईश्वर है, Character is God. आचरण की शुद्धता- इक्कीस फरवरी-देश की प्रधान मंत्री श्रीमती पवित्रता ही धर्म का मुख्य उद्देश्य है और जो इदिरा गांधी इस विश्वतीर्थ के दर्शनों हेतु पधारी । धर्म आचरण की शुद्धता की बात कहता है वही उन्होंने विध्यगिरि पर पुष्पवृष्टि की और मध्यान्ह धर्म विश्व-धर्म है। मुनिश्री का प्रवचन सब धर्मों में विशाल जनसमुदाय के समक्ष अपने विचार को एकाकार कर रहा था, समन्वित कर रहा था। प्रस्तुत किये । कार्यक्रम अत्यन्त भव्य था । इन्दिरा वे किसी धर्म विशेष का विवेचन नहीं कर रहे थे, जी अपने भावों व हर्षातिरेक को न रोक सकी वे विश्व-धर्म का विवेचन कर रहे थे, विश्वधर्म ओर उनके मुख से निकल पड़ा कि-कितना अच्छा पर प्रकाश डाल रहे थे। संध्या समय होने जा रहा होता कि मै भी विध्यगिरि पर अपने पावों से था। सूर्य, प्रातः फिर एक नवीन प्राभा लेकर चलकर भगवान बाहुबली के अभिषेक का सौभाग्य उदित होंने हेतु अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर प्राप्त करती।
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