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एक गीत
मस्तकाभिषेक महामस्तकाभिषेक
- रवीन्द्र जैन (सिने. संगीतज्ञ) बाहुबली भगवान का मस्तकाभिषेक, मस्तकाभिषेक महा मस्तकाभिषेक । धन्य-धन्य वे लोग यहाँ जो आज रहे सिर टेक। बीते वर्ष सहस्त्र, मूर्ति ये तब की गढ़ी हुई, खड़े तपस्वी का प्रतीक बन, तब से खड़ी हुई। श्री चामुण्डराय की माता, इसका श्रेय उन्हीं को जाता, उनके लिए गढ़ी प्रतिमा से, लाभान्वित प्रत्येक ॥१॥ नीर, क्षीर, चन्दन, केशर, पुष्पों की झड़ी लगी, देखन को यह दृश्य, भीड़ यहाँ कितनी बडी लगी। ऐसी छटा लगे मनभावन, फागुन बन बरसे ज्यों सावन, आज यहाँ वो जुड़े, जिन्होंने जोड़े पुण्य अनेक ।।२।। ऐसा ध्यान लगाया, प्रभू को रहा न ये भी ध्यान, किस-किस ने चरणारविन्द में, बना लिया स्थान । बात उन्हें यह भी न पता थी, तन से लिपटी पुष्पलता थी, ये लाखों में एक नहीं, है दुनियां भर में एक ॥३॥ गोमटेश का है सन्देश, धारो अपरिग्रहवाद, सब कुछ होके, सब कुछ त्यागो, वो भी बिना विषाद । आर्थिक बल पर मत इतराओ, दया, क्षमा की शक्ति बढ़ानो, प्रातम हित के हेत हृदय में, जागृत करो विवेक ॥४॥ अपने गुरुवर सहित पधारे, मुनि श्री विद्यानन्द, चारुकीर्ति की सौम्य छवि लखि, हर्षित श्रावक वृन्द । नगर-नगर से घूम घूमकर, प्राया मंगल-कलश यहाँ पर, एक सभी की भक्ति भावना, लक्ष्य सभी का एक ॥५॥ मस्तकाभिषेक महा मस्तकाभिषेक........
(द्वारा-गुरुवाणी प्रकाशन, जयपुर) 2/11
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