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इस लेख के लेखक श्वेताम्बर परम्परा से सम्बद्ध हैं मतः उनकी इस रचना में ऐसी घटनाओं का वर्णन स्वाभाविक है जो दिगम्बर परम्परा में भगवान् महावीर के जीवन में उल्लिखित नहीं हैं। ये घटनाएं उनके जीवन में घटीं या नहीं यह प्रश्न अधिक महत्व का नहीं है। महत्व की बात तो यह है कि ये उदाहरण हमें अपने जीवनोत्थान हेतु क्या सन्देश देते हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में पाठकों को इस रचना को पढ़ना चाहिए। साधनामार्ग में पाए विघ्नों को किस प्रकार सहिष्णु होकर सहन करना चाहिए, किस प्रकार प्रात्मोत्थान में स्वयं का प्रयत्न ही सहायक हो सकता है, दूसरों की यहां तक कि देवताओं तक की सहायता भी इस उद्देश्य की पूर्ति में हमारी कोई सहायता नहीं कर सकती, आदि बताना ही इनका मुख्य उद्देश्य है जिसमें विवाद की कोई गुजाइश नहीं है।
प्र० सम्पादक
क्षमावीर महावीर
• आचार्यश्री नानेश-चरणचश्वरीक मुनिश्री पार्श्वकुमार जिनके विषय में अल्पबुद्धि द्वारा यत्किचित् वैशाली का एक प्रमुख उपनगर था 'क्षत्रिय लिखा जा रहा है वे ऐतिहासिक व्यक्ति रहे हैं। कुण्ड ग्राम'। वहां ज्ञातृवंशीय नृप सिद्धार्थ राज्य महाश्रमण तीर्थंकर महावीर प्रभु, अपने समय के कर रहे थे। उनकी ही प्रियपत्नी त्रिशला क्षत्रियाणी विशिष्ट अध्यात्म योगी, अपूर्व व्यक्तित्व के धनी थी। महावीर स्वामी उनकी तीन सन्तानों में से थे जिनकी समता मिलना कठिन है।
तृतीय थे। परिवार में आप वर्धमान नाम से
सम्बोधित किये जाते थे। नन्दीवर्द्धन आपके ज्येष्ठ __ आज से लगभग 2500 वर्ष से कुछ अधिक वर्ष पूर्व की बात है जब भारत के पूर्वाञ्चल में
भ्राता और सुदर्शना आपकी ज्येष्ठ भगिनी थी। स्थित वैशाली के गणराज्य की सुसमृद्धि चरम
महावीर का उद्वाह राजकुमारी यशोदा के साथ शिखर पर चहुंदिशि अठखेलियां कर रही थी।
सम्पन्न हुआ था। प्रियदर्शना महावीर स्वामी की
एक मात्र सन्तान थी । महावीर के जीवन-क्षरण 30 वहां के सुखी एवं ऐश्वर्य सम्पन्न नागरिकों के विषय ।
वर्ष तक अनन्त सुख-समृद्धि के नन्दन-कानन में में एक बार महात्मा बुद्ध ने स्वयं अपने मुखारविंद से ये वाक्य कहे थे कि यदि देवताओं के दर्शनों की .
___ बहुत ही आनन्द के साथ बीते थे। अभिलाषा करते हो तो वैशाली जाकर वहां के
पाठकों के समक्ष महावीर के सम्पूर्ण जीवन नागरिकों को देखो। वस्तुतः उस समय इस भार- का उल्लेख नहीं किया जा रहा है किन्तु यहां तो तीय वसुन्धरा पर मानों स्वर्ग ही उतर आया था। उनकी साधना के कुछ हृदयविदारक संस्मरणों को स्वर्ग-सहोदर भी कह दिया जाय तो अत्युक्ति नहीं रखना मात्र ही अभीष्ट है। होगी। ऐसे समृद्धिसम्पन्न एवं महिमामयी वैशाली नगरी के भूमिपाल महाराजा चेटक महावीर स्वामी तीस वर्ष व्यतीत हो जाने पर स्व-पर-कल्याण• मातुल थे।
मयी भावनाओं से प्रेरणा प्राप्त करते हुए साधना
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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