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________________ उक्त पांचों नाटकों के लेखक एवं प्रकाशक श्री रतनलाल गंगवाल हैं। पाचों नाटक मंचीय है । ये खेले भी जा चुके है । जन मानस पर इनका अच्छा प्रभाव पड़ता है । गंगवाल नाटक लेखक के साथ-साथ कवि भी है । इसकी छाप नाटकों में स्थान-स्थान पर देखने को मिलती है । नाटक सुरुचिपूर्ण, सरल एवं हृदयग्राही भाषा में है । भगवन्त अरहन्त के मत में भवाभिनन्दी मुनि अभिवादनीय नहीं है लेखक-ब्र० पं० सरदारमल जैन सच्चिदानन्द, मुद्रक-भारतीय प्रिन्टर्स, दिल्ली पृष्ठ32, मूल्य स्वाध्याय । अन्तर का भाव न बदल सका, फिर भेष बदल कर क्या होगा। ममता न तजी घर बार तजा, फिर नग्न हुये से क्या होगा । ऐसी पंक्तियों के साथ इस ट्रैक्ट में लेखक महोदय ने वेष के स्थान पर चारित्र को महत्व देते हुये निर्भीकता पूर्मक शिथिलाचारी मुनियों के सम्बन्ध में लिखने का साहस किया है । पुस्तक में लेखक ने अपने विचार पद्य व गद्य दोनों में प्रस्तुत किये हैं । श्रावक गण सच्चे मुनि की पहिचान कर उनमें श्रद्धा व भक्ति करें यह लघु पुस्तक इसमें सहायक है । वीतरागी व्यक्तित्व : भगवान् महावीर लेखक----डॉ० हुकमचन्द भारिल्ल प्रकाशक-मंत्री, पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर, मूल्य--25 पैसे मात्र, पृष्ठ संख्या 16 । डॉ० भारिल्ल का यह एक निबन्ध है । इस निबन्ध में ---- "वे धर्म के वीर अतिवीर और महावीर थे; युद्ध क्षेत्र के नहीं । युद्ध क्षेत्र में शत्रु का नाश किया जाता है और धर्म क्षेत्र में शत्रुता का । युद्ध क्षेत्र में पर को जीता जाता है और धर्मक्षेत्र में स्व को । युद्ध क्षेत्र में पर को मारा जाता है और धर्मक्षेत्र में अपने विकारों को" । इस प्रकार के सुन्दर विचारों के साथ लेखक ने महावीर के व्यक्तित्व में वीतराग-विज्ञान की विराटता का दिग्दर्शन अत्यन्त सरल, सहजग्राह्य एवं चित्ताकर्षक दब्दों में किया है। तीर्थंकरों का सर्वोदय मार्ग लेखक-डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, लखनऊ, प्रकाशक- प्रेमचन्द जैन, जैनावाचकम्पनी, दिल्ली। प्रसिद्ध विद्वान् डॉ. ज्योतिप्रसाद ने जैनधर्म एवं संस्कृति का पाठकों को सामान्य परिचय प्रदान करने के उद्देश्य से यह उपयोगी पुस्तिका लिखी है । पुस्तक का प्रारम्भ क्रमशः धर्म, दर्शन, जैनधर्म की प्राचीनता इत्यादि शीर्षकों से करके जिनेन्द्र भगवान् महावीर के कतिपय उपदेशों के साथ समापन किया है। महावीर जयन्ती स्मारिका 76 3-23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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