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________________ (1) निमित्त-नैमित्तिक पूजन पाठों सम्बन्धी सभी आवश्यक एवं उपयोगी सामग्री के संकलन का यह सुन्दर एवं उपयोगी प्रयास बन पड़ा है । मूल्य 6.50 है । मुद्रण शुद्ध तथा जिल्द पक्की व टाईप मोटा होने से इसकी उपयोगिता बढ़ गई है। . (2) श्री मानतुगाचार्य विरचित इस स्तोत्र की मूल, हिन्दी अर्थ, पांच भाषा छन्दोबद्ध भक्तामर, अंग्रेजी अनुवाद यन्त्र, मन्त्र तथा साधन विधि आदि इसमें संकलित सम्पादित है इसके पहले सम्पादक स्व० पं० श्री अजीत कुमार जी शास्त्री सम्पादक जैन गजट दिल्ली थे । श्री कौशलजी के सम्पादन में यह तीसरा संस्करण और उपयोगी बन पाया है। इसकी उपयोगिता के मूल में नित्य पाठ, जाप तथा अखण्ड पाठ सभी के लिए सब प्रकार की सामग्री विद्यमान है । पुस्तक का मूल्य दो रुपये है। (3) कविवर दौलतरामजी, बुधजनजी तथा द्यानतरायजी द्वारा रचित छढ़छाले इसमें हैं । सम्पादक ने कठिन शब्दों के अर्थ, प्रत्येक ढ़ाल का सार तथा प्रारम्भ में महत्वपूर्ण प्रस्तावना लिखकर इसे उपयोगी बनाने का प्रयास किया है । मूल्य चालीस पैसे मात्र है । (4) श्री और लक्ष्मी के पर्व दीपावली का जैन संस्कृति में अत्यन्त महत्व है । जैन संस्कृति में भगवान महावीर का निर्वाण दिवस होने के कारण इस दिवस की महत्ता अधिक है। इसमें दीपावली की पूजन की सरल विधि है जो प्रत्येक के लिये उपयोगी है । मूल्य 50 पैसे है । (5) इसमें प्रतिक्रमण और सामयिक के बारे में सार विधि बताई है। इसमें कठिन विषयों को सरल भाषा में देने का प्रयास किया हैं । मुख्य सद्उपयोग रखा जाने से इसकी लोकप्रियता और भी बढ़ गई है। ये सारे संग्रह ग्रन्थ है सम्पादक की कोई स्वतन्त्र रचना नहीं हैं । (6) 'भगवान महावीर और उनकी अहिंसा' यह विद्वान् . सम्पादक का लेख है. जो इससे . पूर्व भी ट्रेक्ट के रूप में प्रकाशित हो चुका है। (7) इसमें सोगगढ़ की मान्यताओं का खण्डन करने का प्रयत्न किया गया है । मूल्य चालीस पैसे है। "जिनवाणी" विशेषांक प्रधान सम्पादक-डा. नरेन्द्र भानावत, सम्पादक-डा० कमलचन्द्र सौगानी, डा. शांता भानावत् । प्रकाशक-सम्यक्ज्ञान प्रचारक मण्डल, बापू बाजार, जयपुर-3 मूल्य-दस रुपया । पृष्ठ लगभग 500 । ___ श्री पारस भंसाली द्वारा तैयार किये गये आकर्षक आवरण (मुख पृष्ठ) से युक्त "जैन संस्कृति और राजस्थान" विषय को लिये हुये यह जिनवाणी (मासिक) का विशेषांक भगवान् महावीर के 25 सौवें निर्वाणोत्सव वर्ष के विशेप अवसर पर प्रकाशित हुआ है। इस विशेषांक को अपने विषय का सन्दर्भ ग्रंथ ही कहा जाना. उपयुक्त रहेगा। ग्रन्थ डॉ० भानावत' के कठिन परिश्रम का स्पष्ट भान कराता है । इसके चार खण्ड हैं । प्रथम खण्ड में जैन 3-20 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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