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________________ मौर्यवंशी राजाओं का शासन था और वे सब जैन धर्मावलम्बी थे। उनके राज्य-काल में तो जैन धर्म राज्य-धर्म था। प्रादि जीवहिंसक कार्य कानून द्वारा बंद थे और उनका उल्लंघन करने वालों को दण्ड दिया जाता था। साधारण जनता पर ही नहीं बल्कि वहां के राजा अश्वराज मेवाड़ का चौहान वंशी राजा था। महाराजाओं, राज मंत्रियों तथा सेनापतियों तक इसने भगवान महावीर की निरन्तर पूजा के लिए पर जैन धर्म की गहरी छाप थी। मेवाड़ राज्य में एक ग्राम वीर मंदिर को भेंट किया था। 1110 जब-जब सरकारी किलों की नींव रखी जाती थी तब ई० के शिलालेख से सिद्ध है कि इसने 15 वें तब ही राज्य की ओर से जैन मंदिर बनवाये जाने तीर्थकर धर्मनाथ की पूजा के लिए भी दान दिया की प्रथा थी। अोझाजी के शब्दों में मेवाड़ राज्य था । 1115 ई० का शिलालेख साक्षी है कि वह में सूर्यास्त के पश्चात् भोजन की प्राज्ञा नहीं थी। 16 वें तीर्थंकर शांतिनाथ की पूजा के लिए प्रति डि साहब का कथन है कि कोई भा जन मुनि वर्ष दान देता था । उदयपुर में पधारे तो रानी महोदया आदरपूर्वक विधि अनुसार उनके आहार का प्रबंध स्वयं करती महाराजा रायपाल भी जैनधर्मानुरागी था। थी। 1649 ई० के आज्ञापत्र द्वारा चातुर्मास के 1132 के शिलालेख से प्रकट है कि इसके दोनों निरन्तर चार महिनों तक तेल के कोल्हू, ईटों के पुत्रों रुद्रपाल और अमृतपाल ने भी जैन मंदिरों भट्ट, कुम्हारों के पजावे और शराब की भट्टियां को दान दिये । 1138 के शिलालेख से सिद्ध है 1. (i) मौर्यवंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्मी था । विस्तार के लिए देखिए हमारा "शांति के अग्रदूत भ० महावीर" पृ० 439 । चन्द्रगुप्त का पुत्र महाराजा बिंदुसार, पौत्र महाराजा अशोक तथा सम्प्रति आदि सब जैनधर्मी थे । हमारा लेख 'महाराजा अशोक और जैन धर्म' म० ज० स्मा० 1974, जयपुर खण्ड 2 पृ० 14-32 । Literary evidence and inscriptions indicate beyond doubt that Chandragupta was a Jain. His empire contained a portion of Rajasthan where he established many Jain temples in Rajasthan.-Jain journal, Cacutta, April 19693; p. 200. 2. पं० अयोध्याप्रसाद गोयलीय-राजपूताने के जैन वीरों का इतिहास, पृ० 339 । 3. अोझाजी द्वारा अनूदित टाँड राजस्थान, जागीरी प्रथा पृष्ठ 11 । 4. रावराजा वासुदेव गोविन्द प्राप्टे : जैन धर्म महत्व (सूरत) भाग 1 पृष्ठ 31। 5. ग्रांट दि० 1649 : रश्मी और वांकरोल के खम्भों पर खुदी हुई; दिगम्बर जैन (सूरत) जिल्द 9 पृष्ठ 72 ई०। 6-7-8 E. P. India Vol XI pp. 30-32. तथा जैनिज्म इन राजस्थान पृष्ठ 20 । 9. E. P. India Vol XI pp. 34-35. 2-70 महावीर जयन्ती स्मारिका 76. www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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