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और चौथे वर्ष, विद्याधराधिवास को, जिसे कलिंग के पूर्व राजाओं ने बनवाया था और जो अब तक नष्ट नहीं हुआ था......... जिनके मुकुट व्यर्थ हो गये हैं जिनके कवच काटकर दो टुकड़े कर दिये गये हैं, जिनके छत्र और भृगार (राजचिह्न)
दसवें वर्ष में दण्ड, संधि और सम नीति का पालन करते हुए उसने भारतवर्ष के विरुद्ध एक अभियान किया और उसने देश को विजित किया । (ग्यारहवें वर्ष में) पलायित राजाओं के मणिरत्न प्राप्त किये।
६. काटकर गिरा दिये गये हैं, जिनके रत्न और स्वापतेय (धन) छीन लिये गये हैं ऐसे राष्ट्रिक और भोजकों मे अपने चरणों की वन्दना कराई। पांचवे वर्ष में नन्दराज द्वारा ३०० वर्षों पूर्व बनवाई गई तृणसूर्यमार्गीया प्रणाली (नहर) को नगर (राजधानी) तक लाया। छठवें वर्ष में अभिषिक्त हो राजसूय यज्ञ किया और सब कर
११. पूर्व राजा (विशेष) की राजधानी पिथुण्ड को
गधों से जुतवाया। जनपद के लिये प्रिय ५१३ वर्षों में कृत तिमिर हृद-संघात का भेदन किया। बारहवें वर्ष..... ... हजारों (सैनिकों) द्वारा उत्तरापथ के राजाओं को भयाक्रान्त किया।
७. माफ कर दिये और लाखों प्रजाजनों पर
अनेकों अनुग्रह किये। राज्यकाल के सातवें वर्ष में उसकी गृहवती वज्रधर (कुलवाली) धृष्टि नामवाली गृहिणी ने कुमार को जन्म देकर मातृपद प्राप्त किया ।...........'पाठवें वर्ष में विशाल सेना......
...... द्वारा गोरथगिरि
१२. मागधों के लिये अत्यन्त भय उत्पन्न करते हुए
हाथियों को गंगा में (जल) पान कराया। मगधराज वृहस्पति मित्र से चरण वन्दना कराई। नन्दराज द्वारा ले जाई गई कलिग जिन (की प्रतिमा) को स्थापित किया ।.... ............."अग तथा मगध का धन ले आया।
८. को नष्ट कर राजगृह पर आक्रमण किया।
उसके इस कर्म सम्पादन शब्द को सुनकर यूनानी राजा दिमित अपनी सेना और वाहन
(भय से) छोड़कर मथुरा भागने को ६. विवश हुआ । पल्लव, कल्पवृक्ष, अश्व, हस्ति,
चालकों सहित रथ, गृह, निवास और विश्रामशालायें दान की; और ब्राह्मणों को कर देने से मुक्त कर दिया ।....."अर्हत नवें शासनवर्ष में........."
१३. दृढ़ एवं तोरणयुक्त शिखरों को बनवाने के
लिये विजय से प्राप्त १०० वासुकि (विंशक) मुद्रायें व्यय की, अद्भुत तथा आश्चर्यजनक हस्तिवस्त्र सज्जा का हरण किया......... घोडे, हाथी, रत्न माणिक्य; पाँड्यराजा से लाखों मुक्ता एवं मणिरत्न छीनकर लाया
१४. वासियों को वश में किया। तेरहवें वर्ष
सुप्रवृत विजयचक्र में जीर्ण आश्रय धर्मोपदेशक अहंतों के कायविश्राम हेतु राजपुष्ट व्रतों का प्राचरण करने वाले, वर्षाश्रितों की पूजा में अनुरक्त, उपासक श्रीखारवेल द्वारा कुमारी पर्वत पर आश्रय-गुहायें खुदवायीं गईं।
१०. उसने अड़तीस लाख मुद्राओं से महाविजय
नामक एक राजभवन का निर्माण कराया।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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