SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुम्हें सुनायें मोहन बंशी, छेद वंश में होते । लाज सिखाई लजवन्ती ने सिया दशानन लूटे ।।७।। अरि मारते राम धनुषसेमूर्छितता भी खोवें । पूछा हमसे राम सिया को रावण-घर में रोवे ।।८।। बच्चे होत मारते पाथर, पात जात फल फूटे। डाली तोड़ पीड को काटें खोद जड़ों को देते ।।६।। तुम्हें खिलाते तुम्हें पिलाते, तुम्हें बिठाते कुर्सी । तुम्हें झुलाते और सुलाते, तुम्हें जलाते गुर्सी ।।१०।। फूल हँसातें, फल उत्साहित देव चढ़ाने देते । पुष्प हार से स्वागत करते, सुरभित चन्दन टीके ॥११॥ खाम खिलौने वस्त्र पांवड़ी कई कलाकृति वाले। करी चोखट चौका पटिये, नरनारी रंग वाले ।।१२।। कठपुतली निष्प्राण है पुतला तुम हो प्रारणों वाले । ढोल बजा के नाचते कैसे संयम वाले ? ।।१३।। गिल्ली बन में रोज खिलाता डंडे सर पर पड़ते । ये अन्याय समझ न आया मूड़ी मूड़ पर ओले ॥१४।। हम ही तेरे द्वारपाल हैं हम ही बन्दनवारे । घोड़ा हाथी शेर कैंची से केश कतर ज्यों डारे ।।१५।। दूब समझ नर छाती रुदें वृक्षक मारे जाते। कभी न तुमको गाली दी है मौन रहा, मतवाले ।।१६।। वन के वन कटवा लेते हो, न मानें मानव होके । शव-दाह करें औ संग न छोड़े दग्ध हमें करवाके ।।१७।। बस ने किया सिद्ध जीवन को हम पादप ही ठहरे । असमझ समझे तो समझायें नार न नर से होवें ।।१८।। अनोखी कथा कह क्या कहना ? लोग हंसी ही करते। दुःख मेंटते गले लगाते नर विरले ही होते ।।१६।। हम वृक्षों के बाग बगीचे नन्दन कानन सोहें। जैसी कृपा वास दो सन्मति तुम जीयो हम जी ।।२०।। 1-160 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy