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________________ हा आदि की स्थितियों का मुकाबला किया जा सकता है। उनमें वैदिक और जैन-धर्म की विचारधाराओं का अपूर्व समन्वय मिलता है। श्रावक श्रेणी के जैन नागरिक अपने तथा उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद से टक्कर लेने की अपने परिवार व समाज तथा संपत्ति की रक्षा के दृष्टि से सुगठित प्रतिकारात्मक आन्दोलन के लिये लिए शस्त्र-धारण कर सकते हैं। इतिहास और । सत्य और अहिंसा का सत्याग्रह के रूप में सफलता पुराण ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े हैं। इस सम्बन्ध पर्वक उपयोग किया है। महात्मा गांधी की ट्रस्टी में जैनाचार्य जवाहरलालजी महाराज रचित धर्म शिप की व्याख्या स्वेच्छापूर्वक त्याग एवं अपरिग्रह व्याख्या पुस्तक सहायक हो सकेगी। के सिद्धांत की व्याख्या का रूप ही है । इसे भूदान.. जैन पुराणों में चक्रवतियों (सम्राटों) तथा अांदोलन के रूप में श्री विनोबाजी ने बहुत स्पष्टता अन्य महापुरुषों के साम्राज्य-निर्माण तथा उनकी और सफलता के साथ लागू किया है। पं० विजय यात्राओं तथा युद्धों के अनेकानेक वृत्तान्त जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रतिपादित 'पंचशील' में मिलते हैं। बाद के उपलब्ध इतिहास में मौर्य भी इसी विचारधारा की छाया देखी जा सकती है। सम्राट चंद्रगुप्त (ई. पू. ३२०) का उल्लेख मिलता विभिन्न धर्म और दर्शन के सिद्धान्तों का पृथक २ हैं जिसने उत्तर भारत में अपना शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया और विदेशियों से भी भूमिका पर से पृथक २ होना स्वाभाविक है । वे लोहा लिया। वह जैन ही था। “कलिंग चक्रवर्ती * मानव की शाश्वत् समस्याओं का समाधान प्रस्तुत महाराजा खारवेल (ई. पू. १७४) को उस युग की __करते आये हैं । परन्तु उनकी उपादेयता तभी संभव राजनीति में सबसे अधिक महत्व का व्यक्ति माना है जबकि नदी के निर्मल जल की तरह वे सतत् जाता है......."उसकी शक्ति भारत के अंतिम छोरों प्रवाहमान रहें। जहां जल का प्रवाह अवरुद्ध तक पहुँच गई थी। अपनी महाविजय के बाद । Me हो जायेगा वहीं उसमें सड़न पैदा हो जायगी। हमें खारवेल ने जैन धर्म का महा अनुष्ठान किया और समग्र जीवन को उसके सतत् गतिशील और भारतवर्ष भर के जैन यतियों, तपस्वियों, ऋषियों, परिवर्तनशील होने की पृष्ठभूमि में देखना होगा। और पंडितों को बुलाकर एक धर्म-सम्मेलन भी एकांगी, एक-पक्षीय और 'स्व' एवं 'स्व' से संबंधित किया" (जैन धर्म-कैलाशचंद्र शास्त्री पृ० ३७) । स्वार्थों की परिधि में अपने दृष्टिकोण रूड़ और बाद में दक्षिण-भारत में गंग वंश तथा गुजरात में अपरिवर्तनीय मान लेने से तो आज के युग में चालुक्य वंश के राज्यों के उल्लेख भी मिलते हैं हमारा गति शुतुरमुर्गे की सी हो जायगी। जिनके राजवंश जैन थे। 'सामाजिक-व्यवस्था तब तक नहीं चल सकती अपने और अपने परिवार के सुख-वैभव का जब तक समाज के सदस्य एक उत्तरदायित्वपूर्ण बलिदान कर समूचे राष्ट्र की विपत्ति को अपनी प्राचरण के कुछ माप-दण्ड निर्धारित नहीं करते। विपत्ति मानने वाले और देश के जीवन-प्रवाह का वैसे मूल्य और मान्यतायें चिरस्थायी नहीं होते अपने को अविच्छिन्न अंग मानने वाले अनासक्त उनमें सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ त्याग और कर्मयोगी महापुरुष ही संकट के समय देश का ग्रहण चलता रहता है। महात्मा गांधी ने भी नेतृत्व कर सकते हैं। महात्मा गांधी का समग्र स्वीकार किया है कि, जीवन में कोई अन्तिम और जीवन अन्याय के विरुद्ध प्रतिकार की अपूर्व कहानी विफलातीत निष्कर्ष नहीं होते। उनमें अनुभव और महावीर जयन्ती स्मारिका 76 1-117 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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