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________________ शास्त्री अब तक नहीं जानते कि जैनियों का स्याद्वाद किस चिड़िया का नाम है । धन्यवाद है जर्मन, फ्रांस, इंग्लैण्ड के कुछ विद्यानुरागी विशेषज्ञों को जिनकी कृपा से इस धर्म के अनुयायियों के कीर्ति-कलाप की खोज की गई और इस ओर भारत के इतरजनों का ध्यान आकृष्ट हुआ । यदि ये विदेशी विद्वान् जैनों के धर्म ग्रन्थों की आलोचना न करते, उनके लेखकों की महत्ता प्रकाशित न करते तो हम लोग शायद आज भी पूर्ववत् अज्ञान के अन्धकार में डूबे रहते ।' वस्तुतः स्याद्वाद तत्वज्ञान की नींव और दर्शन का गूढ़ सिद्धान्त ही नहीं है, अपितु दैनिक लोकव्यवहार की आवश्यकता है । सम्पूर्ण लोक 1-90 Jain Education International व्यवहार सापेक्षिक होता है । स्याद्वाद अनेकान्तवाद मानव मस्तिष्क से दुराग्रहपूर्ण विचारों को दूर करता है । उन्हें वैचारिक सहिष्णुता प्रदान कर उनके ज्ञान का विकास करता है । शुद्ध व सत्य विचार के लिये ग्राह्वान करता है । वर्तमान युग की समस्यायों का समाधान वर्द्धमान महावीर के सिद्धान्तों की सुखद शीतल छाया में ही संभव है । जिस क्षण विश्व भगवान् के इन सिद्धांतों को आत्मसात् करेगा, वह क्षण इतिहास का स्वर्णिम क्षरण होगा । राग, द्व ेष, हिंसा और विरोध का केवल प्रतीत होगा न वर्तमान न भविष्य | बोलती है । * श्री लक्ष्मीचन्द्र 'सरोज' एम.ए. (हिन्दी संस्कृत ) बजाजखाना जावरा (म. प्र. ) * महावीर - वाणी 'नियम' अहिंसा अमरता लिये डोलती । और हिंसा घृणा का गरल घोलती ।। अतृष्णा सुसमता सदा तौलती है । और तृष्णा परिधि का खरल खोलती । मिलेगा करम - फल धरा बोलती है । भले को भला यह सदा तौलती है ।। सुधारें संयम जरा ढोलती है । अनेकान्त-वारणी सभी बोलती है ।। सभी हैं बरावर 'नीति' बोलती है । 'जियो और जिलाओ जगत, बोलती है । नहीं ईश कोई सदा जो लती है । बनें ईश हम सत्र मती बोलती है ।। महावीर - वाणी 'नियम' बोलती है । गले से लगाओ 'समय' खोलती है | धरम- देश बन्धन सदा छोलती है । आत्मिक अमरता सदा मोलती है | For Private & Personal Use Only महावीर जयन्ती स्मारिका 76 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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