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शुभाशंसा
संकाय पत्रिका का प्रकाशन विश्वविद्यालय का एक और नया उपक्रम है । रजत जयन्ती वर्ष में इसका प्रकाशन आरम्भ हो रहा है। यह विशेष प्रसन्नता का विषय है।
यह विश्वविद्यालय प्राच्य विद्या का एक ऐतिहासिक विद्यातीर्थ है। इसकी स्थापना के दो सौ वर्ष पूरे होने वाले हैं। विश्वविद्यालय के रूप में इसके विकसित होने का यह रजत जयन्तो वर्ष है। ऐसे अवसर पर संकाय पत्रिका का प्रवेशांक विद्वज्जगत् के लिए एक प्रशस्त उपहार है । रजत जयन्ती वर्ष में विश्वविद्यालय में अनेक विशिष्ट आयोजन हुए। उनमें विश्वविद्यालय परिवार का मैंने अद्भुत पारस्परिक सहयोग देखा। इसी वर्ष में श्रमणविद्या संकाय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। इसमें देश-विदेश के अनेक विद्वानों ने भाग लिया । मैं स्वयं अनेक सत्रों में उपस्थित रहा। मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ और संतोष भी हुआ कि विश्वविद्यालय के विद्वानों के साथ-साथ विद्यार्थियों ने भी संगोष्ठी में उच्च स्तर के निबन्ध प्रस्तुत किये। परिसंवाद में भी उन्होंने भाग लिया। संस्कृत, पालि, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी जिस भाषा में निबन्ध पढ़े गये, उसी भाषा में परिसंवाद हुआ। जापान के विद्वानों का एक पूरा दल इसमें
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