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________________ २७४ श्रमपाविद्या १, चक्षु-इन्द्रिय निग्रह पांच महाव्रत और पांच समिति के बाद श्रमण के अट्ठाईस मूलगुणों में वाइन्द्रिय निरोध ग्यारहवां मूलगुण है। मूलाचारकार ने इसकी परिभाषा में कहा है-चेतन-अचेतन पदार्थों के व्यवहार संस्थान (आकृति) और वर्ण में राग-द्वेष तथा अभिलाषा का अभाव चक्षुरिन्द्रिय निग्रह है।' २. श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह जिसके द्वारा सुना जाता है वह श्रोत्र इन्द्रिय है । षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद-इन सप्त चेतनजन्य स्वरों तथा वीणा आदि अचेतन जन्य प्रिय-अप्रिय शब्द सुनने से हृदय में उत्पन्न राग-द्वेषादि का मन, वचन और काय से निरोध करना श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह है। ३. घ्राणेन्द्रिय निग्रह जिसके द्वारा गंध का ज्ञान हो वह घ्राणेन्द्रिय है। वस्तुतः पदार्थ स्वभावतः मनोज्ञ या अमनोज्ञ गन्धयुक्त होते हैं तथा कुछ पदार्थों में अन्य पदार्थों के संयोग से गंध उत्पन्न होती है। अतः सुगंध में राग और दुर्गन्ध में द्वेष रखकर सुख-दुःख का अनुभव न करना घ्राणेन्द्रिय निग्रह है। ४. रसनेन्द्रिय निग्रह जिसके द्वारा स्वादानुभव किया जाय वह रसनेन्द्रिय है। अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य-इन चार प्रकार के आहार तथा तिक्त, कट, कषायला, अम्ल और मधुरइन पांच रसों का सम्मूर्च्छनादि जीव रहित प्रासुक आहार दिये जाने पर उनमें गृद्धि न करना रसनेन्द्रिय निग्रह है। ५. स्पर्शनेन्द्रिय निग्रह चेतन-अचेतन पदार्थों से उत्पन्न कठोर, मृदु, स्निग्ध, रूक्ष, हलके, भारी, शीतल, उष्ण इत्यादि प्रकार के सुख-दुःख रूप स्पर्श का निरोध करना स्पर्शनेन्द्रिय निग्रह है। १. मूलाचार. ११७. २. मूलाचार १।१८. ३. वही. १।१९. ४. वही. १२०. ५. वही. १।२१. संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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