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________________ २६६ श्रमण विद्या रहना अहिंसा महाव्रत है। पूर्व में पृथ्वी आदि षट्कायिक हिंसा के त्याग की बात इसलिए कही, क्योंकि, इनमें सम्पूर्ण जीवों का समावेश हो जाता है। अहिंसा के चित्त का निर्माण इन्हीं की हिंसा के त्याग द्वारा संभव है। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि पृथ्वी आदि में से किसी एक निकाय की हिंसा का विधान हो तथा अन्य का निषेध । क्योंकि जो किसी एक की हिंसा करता है वह अन्य किसी भी निकाय की हिंसा कर सकता है और उसके मन में अन्य निकाय के जीवों के प्रति मैत्री भाव बन नहीं सकता। आचारांग में कहा है-इस जगत में जो मनुष्य प्रयोजन वश या निष्प्रयोजन जीव-वध करते हैं, वे इन छह जीव निकायों में से किसी भी जीव का वध कर देते हैं। इसलिए षट्कायिक जीवों की हिंसा का त्रियोग (मन, वचन और काय) से त्याग अहिंसा महाव्रत कहा है । - इस प्रकार की अहिंसा की साधना करने वाला साधक राग-द्वेष को कर्मों का बीज मानकर समभाव रखता है। समभाव को आचार्य कुन्दकुन्द ने चारित्र कहा है । और इस प्रकार के समभाव से युक्त श्रमण इस पृथ्वी पर विहार करते हुए किसी भी प्राणी को कभी भी पीड़ा नहीं पहुँचाते। वे सभी जीवों पर वैसे ही दया रखते हैं, जैसे कि माता पुत्रादिक पर वात्सल्य रखती है। २. सत्य .. राग, द्वेष, क्रोध, भय और मोह आदि दोषों से युक्त असत्य वचन, परसन्तापकारी सत्यवचन तथा सूत्रार्थ (द्वादशांग के अर्थ) के विकथन में अपरमार्थवचनइन सबका परित्याग करना सत्य महावत है । परसन्तापकारी वचन जैसे-हास्य, भय, क्रोध तथा लोभवश विश्वासघातक झूठ वचनों का सर्वथा त्याग सत्य महाव्रत है।५ प्रकारान्तर से मृषावाद (असत्य) चार प्रकार का होता है १-विद्यमान वस्तु का निषेध करना । जैसे जीवादि तत्त्वों की विद्यमानता को नकारना कि जीव (आत्मा) १. आचारांग, ५।१।१ । २. चारित्तं समभावो-पंचा स्तिकाय १०७ । ३. वसुधम्मि वि विहरंता पीडं ण करेंति कस्सइ कयाई । जीवेसु दयावण्णा माया जह पुत्तभंडेसु । मूलाचार ९।३२ ४. रागादीहिं असच्चं चत्ता परतावसच्चवयणुत्ति ।। सुत्तत्थाणविकहणे अयधावयणुज्झणं सच्चं ॥ मूलाचार १६ ५. वहीं ५।९३ । संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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