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________________ १55 श्रमण विद्या 198) पाऊण दुहमणतं जिणीवएसाओ जीववहयाणं । होज्ज अहिंसाणिरओ जहि णिब्वेओ भवदुहेसु ॥ 199) जो देइ परे दुक्खं तं चिय सो लहइ लक्खसयगुणियं । वीयं जहा सुखित्ते विवाइयं बहुफलं होइ । 200) इक्कंच्चिय जीवदया जणेइ लोयम्मि सयलसोक्खाई। जह सलिलं धरणिगयं णिप्पावइ सब्ब सस्साई ।। 201) जिंबाओ ण होइ गुलो उछू ण य होंति निंबगुलियाओ । हिंसाओ न होइ सुहं ण य दुक्खं अभयदाणेण ।। 202) जो देइ अभयदाणं देइ य सोक्खाइं सव्वजीवाणं । उत्तमठाणम्मि ठिओ भुंजइ सव्वोत्तमं सोक्खं ॥ 203) लोभाओ आरम्भो आरम्भाओ य पाणिवहो। लोभारंभणियत्ते णपरं अह होइ जीवदया ॥ 204) धम्म करेइ तुरिया धम्मेण य होंति सव्व सुक्खाइं । जीवदयामूलेण य पंचेंदिणिग्गहेणं च ॥ 205) जंकिंचि णाम दुक्खं णारयतिरियाण तह य मणुयाणं । तं सव्वं पावेणं तम्हा पावं विवज्जेह । 206) नरणरवइदेवाणं जं सुक्खं सव्व उत्तम होइ । तं धम्मेण विहप्पइ तम्हा धम्मं सया कुणह ।। 207) सो दाया सो तवसी सो य सुही पंडिओ य सो चेव । जो सयलसुक्खवीयं जीवदयं कुणइ खंति च ।। 208) मा कीरउ पाणिवहो मा जंपह मूढ अलियवयणाई। मा हरह परधणाई मा परदारे मई कुणह ॥ 209) जो कूणइ मणे खंती जीवदया मद्दवज्जवं भावं । सो पावइ णिव्वाणं ण य इंदियलंपडो लोओ ।। संकाय पत्रिका-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014028
Book TitleShramanvidya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1983
Total Pages402
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size14 MB
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