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महोपाध्याय यशोविजयजी महाराजनी रचेली कर्मप्रकृति-टीकानी एक अमूल्य हस्तप्रति
मुनि शीलचन्द्रविजय न्यायविशारद न्यायाचार्य महामहोपाध्याय श्रीयशोविजयजी गणिनां नाम अने कामथी, भारतीय संस्कृति भने साहित्यनो कोई पण प्रेमी, भाग्ये च अजाण्यो हशे. एमणे करेली भारतोय वाङ्मयनी सेवा अनोड छे ए निर्विवाद छे. आम छता, एमनो जन्म-समय अने एमनु बोक्कस मायुष्य केटलु, ए अंगे पूरती अने विश्वसनीय जाणकारी उपलब्ध नथी थई शकी, ए आपणुं कमभाग्य छे.
एमनो समय नको करवा माटेनु मुख्य साधन, एमना ज समकालीन मनाता श्रीकान्ति. विषयजीए, उपाध्याय नीना स्वर्गवास बाद रचेल 'सुजस-वेली भास' नामनु गुजराती काव्य रह्य छे. ते अनुसार विक्रम सत्तरमा सैकानी चोथी पच्चीसोमां उपाध्यायजीनो जन्म अन्दाजायो छे अने एमनो स्वर्गवास सं. १७४३मां थयो होवानु 'भास' कर्ताए नोंध्यु छे. ___ केटलाक वखत पहेलां, एक वस्त्र-चित्रपट प्रकाशमां आव्यो छे. तेनो पुष्पिकाना लेख उपरथी, उपाध्यायजीना जन्म-समय विशेनु उपरनु अनुमान बदलवु पडे तेवी स्थिति ऊभी थई. आ वस्त्रपटनी छची तथा तेनो परिचय, 'आचार्य श्रीविजयवल्लभसूरि स्मारकग्रंथ'मां प्रकाशित छे. तेने जो आधारभूत समजीए तो उपाध्यायजीनो जन्म, मोडामां मोडो पण, १७मा सैकानी बोजी पच्चोसीनां छेवटमां थएलो, एम स्वीकारवु पडे. अने विद्वानो एम करवा प्रेराया पण छे ज. परंतु, जरा सुक्ष्मताथी विचार करतां, ए चित्रपटने पाएलु महत्व विचारास्पद बनी रहे छे. आनी बधु स्पष्टताथी विचार करीए.
(१) आधारभूत मनातो ए चित्रपट 'मेरुपर्वत'नो छे. ए पट चितरनार 'पं. श्रीनयविजयजी गणि' छे. तेमणे 'गणि जसविजय' माटे एनु आलेखन कयु छे. (संवत १६६३ वर्षे कणसागरनामे लिपीकृतः ॥ महोपाध्याय श्रोकल्याणविजयगणिशिष्येण पं. नयविजयगणिना लिपीकृतः ॥ गणि जसविजय योग्यं ॥ -चित्रपटनी पुष्पिकानो अंत भाग).
आमां बे मुद्दा छे. पहेली वात तो ए के गणि जसविजयजी, ते पं. नयविजयनीना शिष्य के या नहि, ते आ पुष्पिकामांथी नक्की नथी थतु. छतां मानी लईए के नयविनयची अने बसविजयजी एटले के यशोविजयजी, बन्ने गुरुशिष्यो ज छे. तो पण सवाल ए छे के 'गणि'पद जेवी महत्त्वनी पदवी सुधी पहोंचेला यशोविजयजी माटे, तेमना गुरुए 'मेरुपर्वत' चितरवानी नरूर शी पडी १ जेमणे तमाम शास्त्रोनां रहस्य हस्तगत कर्यां छे अने ते सिवाय तेओ 'गणि'पद ले न नहि, तेवी व्यक्तिने 'मेरुपर्वत'नु स्वरूप नहि समजायु होय, ते गुरु जेवा गरुए ते चितरी आपवु पडे १ सामान्यतया एवं मनाय के, शिष्य बाळक या बाळकबुद्धि होय, तो तेने समजाववा माटे, गुरु, आवी वस्तुओ चितरी बतावे अने' समजावे. पण एवो प्रभ यशोविजयजी माटे ऊभो ज नथी थतो. वली, तेभो 'गणि' होईने, तेमनां 'गणि' पद ने अने आगळ ऊपर तेमने मळी शकनार अन्य पदवीओने लक्ष्यमा राखीने, तेमना गुरु, 'गणिविद्या' के 'वर्धमानविद्या' के 'सूरिमंत्र' जेवां मन्त्रपटो चितरी आपे तो ते समजी शकाय, पण तेमने 'मेरु' चितरवानी शो जरूर पडो; ए विचारणीय मुद्दो छे.
(२) वीजु ए के प्रसिद्ध कराएला वस्त्रपटनो पुष्पिकामां, पं. नयविजयजीने उपाध्याय श्रीकल्याणविजय नी गणिना शिष्य दर्शावाया छे, एटलुज नहि, डो० रमणलाल ची. शाह
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