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राणकपुर का प्राचीनतम उल्लेख
राम पल्लभ सोमानी
राणकपुर के विसं० १४९७ के शिलालेख में वर्णित है कि महाराणा कुंभा की आज्ञा से प्रेष्ठि धरणाशाह ने "त्रैलोक्यदोपकाभिधान श्रीचतुर्मुख युगादीश्वर विहारः” नामक मन्दिर बनाया । नगर का नामकरण भी राणा के नाम पर राणकपुर रखा । श्रेष्ठि धरणा के परिवार वाले मूलरूप से नांदिया (जिला सिरोही) के रहने वाले थे। यहाँ से वे लोग मांडू गये । वहाँ मोहम्मद खिलजी के विसं. १४९३ में सत्ता हथियाने के बाद धरणाशाह मेवाड़ में महाराणा कुंभा के पास चले आये । “राणगपुर स्तवन' जिसे मेह कवि ने विसं० १४९९ में विरचित किया था यहाँ कई मंदिर होने की पुष्टि करता है। अजमेर के राजकीय संग्रहालय में विसं १४९४ का एक ताम्रपत्र है इसमें "राणपुर" का नाम दिया गया है। संभवतः वह अब तक शात संदर्भो में सबसे प्राचीन है । रोणकपुर के विसं० १४९६ के लेख में “राणपुर नगरे राणा श्री कुम्भकर्णनरेन्द्रेण स्वनाम्ना निवेशिते" शब्द होने से स्पष्ट है कि इस नगर का निर्माण राणा कुंभ के नाम पर किया गया था । प्राचीन नाम मादडी था। कुभा ने यह नामकरण धरणाशाह के वहाँ बसने और मन्दिर बनाने को योजना के बाद ही किया होगा । धरणाशाह के इस क्षेत्र में बसने के कुछ और प्रमाण भी है। यथा -
(१) विसं. १४९५ का एक मूर्ति लेख - यह धातु प्रतिमा इस समय नाहटों की गुवाड़ के जैन मन्दिर बीकानेर में है। मूल रूप से वह सीरोही क्षेत्र को है । लेख का मूल पाठ निम्न है।
__ "सं० १४९५ ज्ये० सु० १४ प्राग्वाटवं सं० कुरपाल भा० कमलदे पुत्र सं० रत्ना भ्रातृ सं० धरणाकेन सं० रत्ना भा० रत्नादे पुत्र लाषा मजा सोना सालिग (धरणा) स्वभार्या धारलदे पुत्र जाषा जावउ प्रमुख कुटुम्ब युतेन श्री आदिनाथ चतुर्विंश तका पट्ट कारितः प्र. तपा श्री देवसुन्दर सूरि शिष्यश्री सोमसुन्दर सूरिभिः ॥"
राणकपुर के वि०सं० १४९६ के लेख में भी रत्ना और धरणा के पुत्रों के नाम भी यहीं दिये गये हैं।
(२) राणगपुर स्तवन आदि स्तोत्रों के अनुसार वि० सं० १४९५ में जब भीषण अकाल पड़ा तव धरणाशाह ने प्रचुर धन व्यय करके लोगों को सहायता दो। यह अकाल पश्चिमी राजस्थान में पड़ा था।
मन्दिर बनाने का कार्य कब शुरु हुआ था यह स्पष्ट नहीं है। संभवतः विसं. १४९३ एवं १४९४ के मध्य शुरू हुआ हो । विसं० १४९६ में तल भाग का मूल गर्भ आदि बन चुके थे। अबमेर संग्रहालय के निम्न ताम्रपत्र से स्पष्ट है कि वि सं० १४९४ के पूर्व ही "राणपुर" नाम प्रसिद्ध हो चुका था। रागकपुर के १४९६ के लेख में, कल्पसूत्र की विसं० १५२५ की मांडू की प्रशस्ति आदि में "राणपुर" नाम ही दिया गया है ।
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