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जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
२. कण्हेरी अभिलेख के आधार पर (इण्डियन एण्टिक्वेरी, भाग १३, पृष्ठ १३५) जयधवला टीका की परिसमाप्ति तिथि के आधार पर यह तिथि मानना (सी० आर० कृष्णमाचार्य, साउथ इण्डियन इंस्क्रिप्शंस, भाग ११, खण्ड १, प्रस्तावना, पृ० ५ ए० एस० अल्तेकर, दि राष्ट्रकूटज एण्ड देयर टाइम्स, पृ० ८७) उचित नहीं है क्योंकि परिसमाप्ति तिथि ८३७ ई. है ।
अमोघवर्ष प्रथम के पुत्र कृष्ण द्वितीय के शासनकाल की ज्ञात प्रारंभिकतम तिथि ८८८ ई. (एपिग्राफिया इण्डिका, भाग १३, पृ० १८९, पंक्ति २ - ३ ) है । अमोघवर्ष प्रथम की मृत्यु ८७८ से ८८८ ई० के बीच कभी हुई होगी, किन्तु कृष्ण द्वितीय के शासन प्रारंभ की निश्चित तिथि के ज्ञात न होने के कारण मृत्यु तिथि को निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता । यदि ८८८ ई. कृष्ण द्वितीय के शासन का आरंभिक वर्ष माना जाय तो अमोघवर्ष प्रथम का शासनकाल १० वर्ष के लगभग और बढ़ जाएगा ।
३. विध्वस्तै कान्तपक्षस्य स्याद्वादन्यायवादिनः ।
देवस्य नृपतुंगस्य वर्धतां तस्य शासनम् ॥
- महावीर कृत गणितसारसंग्रह, मंगलाचरणं, श्लोक ८ । एक अन्य सन्दर्भ में स्याद्वाद का उल्लेख अमोघवर्ष प्रथम के कोन्नूर अभिलेख में भी प्राप्त होता है (एपिग्राफिया इण्डिका, भाग ६, पृष्ट ३७, श्लोक ४४) । ४. यस्य प्रांशुनखांशुजालविसरद्वारान्तराविर्भवत्पादाम्भोजराजः पिशङ्कमुकुटप्रत्यग्ररत्नद्युतिः । संस्मर्ता त्वमोघवर्षनृपतिः पूताहमद्येत्यलं स श्रीमज्जिनसेनपूज्य भगवत्पादो जगन्मङ्गलम् ॥ - गुणभद्ररचित उत्तरपुराण, प्रशस्ति, श्लोक ९ ।
सप्पं पातुमसौ ददौ निजतनुं जीमूतकेतोस्सुतः श्येनायाथ शिविः कपोतपरिरक्षार्थं दधीचोऽथिने । तेप्येकेकमतयन्किल महालक्ष्म्यै स्ववामांगुलि लोकोपद्रवशान्तये स्म दिशति श्रोवीरनारायणः ॥
५.
- एपिग्राफिया इण्डिका, भाग १८, पृ० २४८, श्लोक ४७ ।
६. कर्णाटक शब्दानुशासनम्, पृ० १९४; इण्डियन एंटिक्वेरी, भाग ३३, पृ० १९८ ।
७. दि जर्नल आफ दि बाम्बे ब्रांच आफ दि रायल एशियाटिक सोसाइटी, भाग २२, पृ० ८१ ; कविराजमार्ग, के. बी. पाठक संपादित, १८९८ ।
८. वही । प्रशंसा करने वाले साहित्यकार हैं नागवर्मा द्वितीय (११५० ई.) केशिराज (१२२५ ई.) एवं भट्टाकलंक (१६०० ई.) ।
९.
दि जर्नल आफ दि बाम्बे ब्रांच आफ दि रायल एशियाटिक सोसायटी, भाग २२, पृ० ८५ । जिनसेन ने अमोघवर्ष प्रथम का उल्लेख अपने पाश्वभ्युदय ( अंतिमसर्ग, श्लोक ७०) में किया है—भुवनमवतु देवः सर्वदामोघवर्षः ||
परिसंवाद ४
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