________________
जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
की मूर्तियाँ ब्रज की कला में उपलब्ध हैं। नेमिनाथ की यक्षिणी अम्बिका तथा ऋषभनाथ की यक्षिणी चक्रेश्वरी की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। आयागपट्ट प्रायः वर्गाकार शिलापट्ट होते थे, जो पूजा में प्रयुक्त होते थे। उन पर तीर्थंकर, स्तूप, स्वस्तिक, नंद्यावर्त आदि पूजनीय चिह्न उत्कीर्ण किये जाते थे। मथुरा संग्रहालय में एक सुन्दर आयागपट्ट है जिसे उस पर लिखे हुए लेख के अनुसार लवणसोमिका नामक एक गणिका की पुत्री वसुं ने बनवाया था। इस आयागपट्ट पर एक विशाल स्तूप का अंकन है तथा वेदिकाओं सहित तोरणद्वार बना है। मथुरा कला के कई उत्कृष्ट आयागपट्ट लखनऊ संग्रहालय में है। रंगवल्ली का प्रारम्भिक सज्जा-अलंकरण इन आयागपट्टों में दर्शनीय है।
___ मथुरा के समान भारत का एक बड़ा सांस्कृतिक केन्द्र विदिशा-साँची क्षेत्र था। वहाँ वैदिक-पौराणिक, जैन तथा बौद्ध धर्म साथ-साथ शताब्दियों तक विकसित होते रहे। विदिशा के समीप दुर्जनपुर नामक स्थान से कुछ समय पूर्व में तीन अभिलिखित तीर्थंकर प्रतिमाएँ मिली हैं। उन पर लिखे हुए ब्राह्मी लेखों से ज्ञात हुआ है कि ई. चौथी शती के अन्त में इस स्थल पर वैष्णव धर्मानुयायी गुप्त वंश के शासक रामगुप्त ने कलापूर्ण तीर्थंकर प्रतिमाओं की प्रतिष्ठापना करायी । सम्भवतः कुल प्रतिमाओं की संख्या चौबीस थी। विदिशा नगर के निकट एक ओर उदयगिरि की पहाड़ी में वैष्णव धर्म का केन्द्र था, दूसरी ओर पास ही साँची में बौद्ध केन्द्र था । जैन-धर्म के समता-भाव का इस समस्त क्षेत्र में प्रभाव पड़ा । बिना किसी द्वेष के सभी धर्म यहाँ संवद्धित होते रहे ।
इस प्रकार के उदाहरण कौशाम्बी, देवगढ़, (जिला ललितपुर, उ. प्र.) खजुराहो, मल्हार (जिला विलासपुर म. प्र.), एलोरा आदि में मिले हैं। दक्षिण भारत में वनवासी, काँची, मूडबिद्री, धर्मस्थल, कारकल आदि ऐसे बहुसंख्यक स्थानों में विभिन्न धर्मों के जो स्मारक विद्यमान हैं उनसे इस बात का पता चलता है कि समवाय तथा सहिष्णुता को हमारी विकासशील संस्कृति में प्रमुखता दी गयी थी।
विभिन्न धर्मों के आचार्यों ने समवाय भावना को विकसित तथा प्रचारित करने में उल्लेखनीय कार्य किए। जैन-धर्म में आचार्य कालक, कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, हेमचन्द्र, देवकीति आदि ने इस दिशा में बड़े सफल प्रयत्न किए। जनसाधारण में ही नहीं, समुद्र-व्यवसायी वर्ग तथा राजवर्ग में इन तथा अन्य आचार्यों का प्रभूत प्रभाव था । पारस्परिक विवादों को दूर करने तथा राष्ट्रीय भावना के विकास में
परिसंवाद-४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org