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जैन विद्या एवं प्राकृतं : अन्तरशास्त्रीय अध्ययने मद्रिमा, पुण्यमा (ऋ ३,४३,२)
पीणिमा, पुप्फिमा सखित्व (ऋ १,१०,६)
सहितं (४८) अव्यय
'उ' और 'ओ' अव्यय का वैदिक और प्राकृत भाषा में प्रचुर प्रयोग-सूचना विस्मय, पश्चाताप आदि के अर्थों में हुआ है ।
'ण'-'न' के रूप में 'इव' के अर्थ मे प्रायः प्रयोग हुआ है। मा-इम निषेध अर्थ में प्रयोग हुआ है।
तावत् यावत् के लिए तत यत का प्रयोग वैदिक भाषा में हुआ है, और प्राकृत में त, य का प्रयोग हुआ है।
___ इसी तरह बहुत से अवयव ऐसे हैं जो प्राकृत और वैदिक भाषा में समान रूप में प्रयुक्त हुए हैं। (४९) समान अव्यय इह ( ऋ १, १३, १०)
इह इध वा (ऋ १,६,९) हि ( ऋ१,६,७) वि (ऋ १,७,३) नहि ( अथर्व १,२१,३) जहि ( अ १,२१,२) नमो (अ, शु१) कुह (ऋ. १,४६,९) कदु ( ऋ१,१८१,१) याव ( अ ४,१९,७)
जाव अथा ( यजु १२,८,१)
अध अह उं (८,९,१) कया ( किस ) ( साम १६८)
कया अया ( इस ) ( साम १,२,४ )
अया आ ( अ २,१०,७)
आ क्व ( सा २७१ ) आणि (ऋ १,३६,६)
कुह
कदु
क्व
दाणि
परिसंवार-४
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