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अधिगम विधि"
अधिगम का अर्थ है पदार्थ का ज्ञान । दूसरों के उपदेशपूर्वक पदार्थों का जो ज्ञान होता है वह अधिगमज कहलाता है ।
जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
इस विधि के द्वारा प्रतिभावान् तथा अल्पप्रतिभा युक्त सभी प्रकार के व्यक्ति तत्त्वज्ञान प्राप्त करते हैं । यही तत्त्वज्ञान सम्यग्दर्शन का कारण बनता है ।
निसर्ग विधि में प्रज्ञावान् व्यक्ति की प्रज्ञा का स्फुरण स्वतः होता है, किन्तु अधिगम विधि में गुरु का होना अनिवार्य है । गुरु से जीवन और जगत् के तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त करना यही अधिगम विधि है ।
निक्षेप विधि
लोक में या शास्त्र में जितना शब्द व्यवहार होता है, वह कहाँ किस अपेक्षा से किया जा रहा है, इसका ज्ञान निक्षेप विधि के द्वारा होता है । एक ही शब्द के विभिन्न प्रसंगों में भिन्न-भिन्न अर्थ हो सकते हैं । इन अर्थों का निर्धारण और ज्ञान निक्षेप विधि द्वारा किया जाता है । अनिश्चय की स्थिति से निकालकर निश्चय में पहुँचाना निक्षेप है । निक्षेप विधि के चार भेद हैं - १. नाम, २. स्थापना, ३. द्रव्य, ४. भाव । १. नाम विक्षेप
व्युत्पत्ति की अपेक्षा किये बिना संकेत मात्र के लिए किसी व्यक्ति या वस्तु का नामकरण करना नाम निक्षेप विधि के अन्तर्गत आता है । जैसे किसी व्यक्ति का नाम हाथी सिंह रख दिया । नाम निक्षेप विधि ज्ञान प्राप्ति का प्रथम चरण है ।
२. स्थापना निक्षेप
वास्तविक वस्तु की प्रतिकृति, मूर्ति, चित्र आदि बनाकर अथवा उसका आकार बिना बनाये ही किसी वस्तु में उसकी स्थापना करके उस मूल वस्तु का ज्ञान कराना स्थापना निक्षेप विधि है । इसके दो भेद हैं
(क) सद्भाव स्थापना,
(ख) असद्भावस्थापना ।
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५. अधिगमोऽर्थावबोधः । यत्परोपदेशपूर्वकं जीवाद्यधिगमनिमित्तं तदुत्तरम् । - सर्वार्थसिद्धिः १.३ ॥ ६. संशये विपर्यये अनध्यवसाये वा स्थितं तेभ्योऽपसार्य निश्वये क्षिपतीति निक्षेपः ।
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-धवला भाग ४। १.३.१।२।६ ।
७. अतद्गुणे वस्तुनि संव्यवहारार्थं पुरुषकारान्नियुज्यमानं संज्ञा कर्म नाम ।
८. सद्भावेतरभेदेन द्विधा तत्त्वाधिरोपतः । - श्लोकवार्तिक २.१.५ । परिसंवाद -४
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- सर्वार्थसिद्धिः १.५ ।
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