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जैन पुराणों में वर्णित प्राचीन भारतीय आभूषण
____ डॉ. देवीप्रसाद मिश्र पुराण भारतीय सांस्कृतिक इतिहास के अजस्र स्रोत हैं। वस्तुतः पुराणों को "भारतीय संस्कृति के विश्वकोश" की संज्ञा दी जा सकती है। पुराण साहित्य भारतीय संस्कृति की वैदिक और जैन धाराओं में समान रूप से उपलब्ध होता है। "इतिहास पुराणाभ्यां वेदं समुपबृह्येत्' की प्रेरणा से जहाँ वैदिक परम्पराओं में अष्टादश तथा अनेक उपपुराणों की रचना हुई, वहीं जैन परम्परा में तिरसठ शलाका महापुरुषों के जीवन चरित को आधार बनाकर अनेक पुराण लिखे गये।
जैन पुराणों की रचना प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत तथा विभिन्न प्रादेशिक भाषाओं में हुई है । अष्टादश पुराणों की तरह यहाँ पुराणों की संख्या सीमित नहीं की गई है। इस कारण शताधिक संख्या में जैन पुराण लिखे गये ।
जैन पुराणकारों ने प्रायः किसी एक या अधिक शलाफा-पुरुषों के चरित्र को आधार बनाकर अपने ग्रन्थ की रचना की, साथ ही उन्होंने पारम्परिक पुराणों की तरह भारत के सांस्कृतिक इतिहास की बहुमूल्य सामग्री को अपने ग्रन्थों में निबद्ध किया है । इस दृष्टि से जैन पुराण भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि हैं।
जैनपुराणों के उद्भव एवं विकास में तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक परिस्थितियाँ क्रियाशील थीं। पारम्परिक पुराणों के आधार पर जैनियों ने रामायण, महाभारत के पात्रों एवं कथाओं से अपने पुराणों की रचना की और उसमें जैन सिद्धान्तों, धार्मिक एवं दार्शनिक तत्त्वों तथा विधियों का समावेश किया है।
जैनपुराणों का रचनाकाल ज्ञात है। ये ग्रन्थ छठी शती ई. से अट्ठारहवीं शती ई. तक विभिन्न भाषाओं में लिखे गये । प्रारम्भिक एवं आधारभूत जैनपुराणों का समय सातवीं शती ई. से दशवीं शती ई. के मध्य है । संस्कृत में विरचित जैनपुराणों में अधोलिखित आभूषणों के बारे में साक्ष्य मिलते हैं।
आभूषण धारण करना भी वस्त्र के समान समृद्धि एवं सुखी जीवन का परिचायक है । इसके अतिरिक्त वस्त्राभूषण से संस्कृति भी प्रभावित होती है । सिकदार परिसंवाद-४
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