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शास्त्रों का अध्ययन आधुनिक सन्दर्भ में कैसे करें
२.०१ प्राचीन शास्त्रों में उपलब्ध सामग्री के आधुनिक सन्दर्भों में विश्लेषण का कार्य अत्यधिक कठिन है । प्रतीक-रूपक (एलीगोरीज़), वर्णक (मोटिफ ) तथा अतिशयोक्तिपूर्ण विवरणों की स्थिति में यह कार्य और भी जटिल हो जाता है । इसके लिए बहुज्ञता, अध्ययन में सतत जागरूकता तथा आग्रह रहित उदार दृष्टि आवश्यक है । इनमें से किसी एक के भी अभाव में अध्येता शास्त्रों की दुर्व्याख्या भी कर सकता है और महत्त्वपूर्ण सामग्री नजरन्दाज़ भी हो सकती है । अतिशय औदार्य भी खतरनाक सिद्ध होता है ।
जैनविद्या एवं प्राकृत : अन्तरशास्त्रीय अध्ययन
२.०२ एक बड़ी कठिनाई यह भी आती है कि पारम्परिक विद्वान् नई व्याख्याविश्लेषणों से अपनी असहमति भी व्यक्त कर सकते हैं, भले ही निष्कर्ष सही और महत्त्वपूर्ण हों । आगे मैं जैन शास्त्रों के सन्दर्भ में जो सामग्री तथा शास्त्रीय शब्दावलि और उसका विश्लेषण यहाँ प्रस्तुत करूँगा, उसमें भी इस सम्भावना को सर्वथा नकारा नहीं जा सकता । मेरे साथ थोड़ी सुविधा ओर रियायत इसलिए हो जाती है कि एक ओर पारम्परिक शास्त्रीय पद्धति तथा दूसरी ओर आधुनिक अध्ययन पद्धति, दोनों के छोर कुछ-कुछ मेरी पकड़ में आ गये हैं । इसलिए यह भी कह सकता हूँ कि 'नामूलं लिख्यते किंचित्, नानपेक्षितमुच्यते' अर्थात् मूल शास्त्र से हटकर कुछ नहीं लिखा जायेगा और अनपेक्षित भी कुछ नहीं कहा जायेगा ।
शास्त्रों में सामाजिक और सांस्कृतिक तत्वों की खोज
३. ०१ पहले कहा गया है कि वर्तमान में जो प्राचीन जैन शास्त्र उपलब्ध हैं, उन सभी का सीधा सम्बन्ध तीर्थंकर वर्धमान महावीर और उनकी परम्परा से है । महावीर के जीवन और उनकी परम्परा विषयक अनुसन्धानों ने इतने तथ्य हमारे सामने लाकर उपस्थित कर दिये हैं कि ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न शाखा प्रशाखाओं के सन्दर्भ में उनके अन्तरशास्त्रीय (इन्टरडिसिप्लीनरी) अध्ययन-अनुसन्धान की सम्भावनाएं व्यापक और मुखर होती जा रही हैं ।
३.०२ महावीर का जन्म ईसा पूर्व छठी शताब्दी में कब और किस दिन हुआ था यह भी इतिहासविदों ने निश्चित कर लिया है। भारतीय तिथियों के अनुसार चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को महावीर का जन्म हुआ । ईसवी सन् की गणना के अनुसार वह दिन ३० मार्च ईसा पूर्व ५९९ था । महावीर के पिता सिद्धार्थ वैशाली गणतन्त्र के कुण्डग्राम के राजा थे । इन दोनों स्थलों की पहचान पुरातात्त्विक सन्दर्भ सामग्री के आधार पर कर ली गयी है । समाजशास्त्रीय सन्दर्भ सामग्री ने भी इसमें मदद की है । महावीर ज्ञातृवंशी थे । बिहार के इन क्षेत्रों में जथरिया जाति अभी भी वर्तमान
परिसंवाद -४
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