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- गण या विष से ।
जब बालक से विभु बने
विद्यावारिधि डॉ. महेन्द्रसागर प्रचंडिया, डी.लिट्
जनम-मरण मिलकर प्राणी को संसारी बनाते नहाते रहे और शची जब उनका पोछन करती है, तो हैं। संसार उसके सुख-दुख भोगने की प्रयोगशाला है। जब बार-बार पोछने पर भी कपोल प्रदेश से जल बिन्दु अपने कर्मानुसार वह यहाँ अपनी आयुष्य अवधि भोगने पुछने का नाम नहीं लेता, तो वह साश्चर्य हैरान हो आता है। जन्म लेकर वह कर्म करने लगता है। गृहीत जाती है। शची को हैरान देखकर देवेन्द्र पूछते हैं। पास
और अगृहीत कर्मोदय होने पर वह सुख-दुख भोगता आकर वे विभु को पेखते और कपोल प्रदेश को परखते है। सुख और दुख स्वभाव से स्वाभिमानी होते हैं। हैं। देवेन्द्र शची से कहते हैं - आप नहीं जानती, किसी प्राणी के पास वे बिना बुलाये कभी नहीं आते आपके नाक के आभूषण में जो मोती जड़ा हुआ है, हैं। प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कर्मों के माध्यम से सुख उसका प्रतिबिम्ब प्रभु के निर्मल कपोल प्रदेश पर पड़ता
और दुख बुलाता है। इस रहस्य को सामान्यत: वह नहीं है। दरअसल वह मोती नग का प्रतिबिम्ब है, जल बिन्दु जानता। भगवान महावीर ने इस रहस्य का उजागरण नहीं। किया था।
शची एक तरफ हटीं कि जल बिन्दु भी हट सोलह कारण भावनाओं को चिन्तवन करते- गया। कंचन सी काया है बालक वर्द्धमान की। कंचन करते उन्हें तीर्थंकर कर्म बंध गया था। महारानी त्रिशला सी काया में यह सब संभव है। की कुक्षि में जब उन्होंने प्रवेश किया, उससे पूर्व ही प्रभु वर्द्धमान के पंच नामों की महिमा को लोक में रतनन की वृष्टि होने लगी थी। दुकाल-सुकाल पुराणों ने बार-बार गाया और दुहराया है। वर्द्धमान, में परिणत हो उठा था। प्राणियों के सारे संताप प्रायः सन्मति, वीर, अतिवीर और महावीर संज्ञायें सार्थक सान्त हो गये। तीर्थंकर जीवन की पाँच घटनाओं - सिद्ध और प्रसिद्ध होती गयीं। गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष घटा करती हैं। इनसे महावीर के वचन, तप और संयम-साधना से लोक के प्राणियों का कल्याण होता है, अत: यहाँ इन्हें अनप्राणित होने से प्रवचन बन गये। वचन जब प्रवचन कल्याणक कहा जाता है।
बन जाते हैं, तब बौद्धिक प्रदूषण समाप्त हो जाता है। भगवान महावीर का जन्म कल्याणक बड़ी भगवान महावीर के व्यवहार कार्य प्रदूषण हर्ता हैं। धूमधाम से मनाया गया। कुण्डग्राम गर्वित हो उठा। महावीर के यथायोग्य तप-संयम साधना करते राजमहल में मंजीरे बजने लगे और बधाये गाये जाने सभी कल्याणक संपन्न होने लगे। ज्ञान कल्याणक संपन्न लगे। राज्य में राजकीय उपहार बाटे गये। निरीह निहाल होने पर स्थान-स्थान पर समवशरण सभाओं के हो उठे। विवुध शिरोमणि देवेन्द्र बालक विभु को नहान आयोजन किये गये। मानस्तम्भ की रचना सारे मान हेतु पाण्डुक शिला पर ले गये। सहस्र अठोतर कलशों समाप्त करने का अमोघ उपाय है। वेदज्ञ गौतम अपने से उनका नहान हुआ। प्रभावंत बालक रूप विभु निष्कम्प अनेक शिष्यों के साथ वहाँ पहुँचते हैं। वे तीर्थंकर
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/4
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