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सम्पादकीय
वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर के 2606वीं पावन जयन्ती समारोह
शुभ अवसर पर राजस्थान जैन सभा द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाश्य " महावीर जयन्ती स्मारिका" का यह 44वाँ पुष्प मनीषी सुधीजनों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष एवं गौरव का अनुभव करते हैं। इस अंक प्रकाशन के साथ राजस्थान जैन सभा अपनी स्थापना के 54 वर्ष पूर्ण कर 55वें वर्ष में प्रवेश कर रही है ।
" महावीर जयन्ती स्मारिका" का सर्वप्रथम शुभारम्भ जैन दर्शन के विश्रुत विद्वान मनीषी, राजस्थान जैन सभा के प्रेरक संस्थापक प्रातः स्मरणीय गुरुवर्य्य पण्डित श्री चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ द्वारा सन् 1962 में हुआ था। उन्होंने तीर्थंकर महावीर के सर्वोदयी सिद्धान्तों को मानवीय समाज को उपलब्ध कराने हेतु राजस्थान जैन सभा को 'स्मारिका' के प्रकाशन की प्रेरणा दी। उनके निर्देश को सभा ने बहुमान पूर्वक क्रियान्वित किया। सन् 1962 से 66 तक पाँच अंकों का विद्वतापूर्ण सम्पादन कर पं. चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ ने समाज को सन्मार्ग प्रदान किया। उनकी ज्ञान- प्रसूत लेखनी से सुसम्पादित महावीर जयन्ती स्मारिका का सर्वत्र समादर हुआ और यह सन्दर्भग्रन्थ रूप में बहुमानित हुई। परिणाम स्वरूप ' स्मारिका प्रकाशन' राजस्थान जैन सभा की एक अपरिहार्य गतिविधि बन गई, जो अद्यावधि गतिमान है। पूज्य
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पण्डित सा. ने स्मारिका को स्वयं की प्रज्ञापूर्ण लेखनी एवं विद्वान मनीषियों के सहयोग से संदर्भ ग्रन्थ के साथ स्वाध्याय ग्रन्थ का स्वरूप प्रदान किया। जिससे यह स्मारिका ग्रन्थ रूप में विद्वानों, शोधार्थियों, साधुसन्तों एवं सामाजिकों के लिए अत्यन्त उपादेय बन कर सिद्ध हुआ । जैन एवं साहित्य समाज के प्रति उनकी यह अनुकम्पा वाचामगोचर है। उनकी प्रज्ञा मनीषा को सर्वदा नमन है।
स्व. पं. चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ के पश्चात् उन्हीं के सुयोग्य प्रसिद्ध विद्वान शिष्यद्वय पण्डित श्री भंवरलालजी पोल्याका और जैन साहित्य के प्रथ इतिहासज्ञ विद्वान डॉ. श्री कस्तूरचन्दजी कासलीवाल के द्वारा स्मारिका का विद्वता पूर्ण सम्पादन हुआ । 1967 से 1982 तक इन दोनों विद्वान सम्पादकों ने स्मारिका को साहित्यिक परिपक्वता प्रदान की और पू. पं. सा. . के प्रज्ञापूर्ण सम्पादन कर्म को संरक्षित और संवर्द्धित किया। तत्पश्चात् पण्डित चैनसुखदासजी के ही शिष्य सम सम्प्रति आध्यात्मिक तत्त्ववेत्ता पं. श्री ज्ञानचन्दजी बिल्टीवाला ने सन् 1983 से 2002 तक के दो दशकों में महावीर जयन्ती स्मारिका का अपनी दार्शनिक ज्ञानाराधना से सुसम्पादन कर समाज के लिए अध्यात्म पाथेय प्रस्तुत किया। इन गुरु तुल्य विद्वान सम्पादक त्रय के ज्ञानोपयोगी सम्पादन के प्रति मत हूँ ।
महावीर जयन्ती स्मारिका - 2007
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