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श्री दिगम्बर जैन भव्योदय अतिशय क्षेत्र रैवासा
- जे. के. जैन
राजस्थान की मरुवृन्दावन सीकर नगरी के निकट श्री चन्द्रप्रभ भगवान की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा राजस्थान अरावली पर्वत की श्रृंखला की तलहटी में अपनी में सर्वप्रथम सम्पन्न हुई थी। भव्यता एवं ऐतिहासिकता को संजोये हुए, श्री दिगम्बर सेठ नथमलजी छाबड़ा ने रैवासा में इस विशाल जैन भव्योदय अतिशय क्षेत्र रैवासा विद्यमान है। इसी मंदिर का निर्माण करवा कर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा क्षेत्र पर वीर निर्माण संवत् १६७४ विक्रम संवत् १२०५ करवाई। में निर्मित अति भव्य आदिनाथ जिनालय है,
यहाँ कई अतिशयपूर्ण घटनाएँ हुई हैं। एक बार मुगल बादशाह औरंगजेब ने भी इस मंदिर के बारे में सुना और वह इस मंदिर को लूटने के लिए एवं खण्डित करने के लिए सेना के साथ चल पड़ा। औरंगजेब को सेना सहित आता हुआ जानकर श्रावकों ने उसके भय से श्रीजी को तलघर में विराजमान कर दिया लेकिन बादशाह तथा उसकी सेना ज्यों ही मन्दिर के निकट पहुँची बादशाह और उसकी सेना को मधुमक्खियों ने घेर लिया तथा उनके शरीर को काटने लगी। बादशाह
और उसकी सेना पीड़ा से छटपटाने लगी तथा भाग खड़ी हुई और इस तरह वह संकट टल गया। कहते हैं कि इस तरह की कई चमत्कारपूर्ण घटनाएँ यहाँ हुई हैं।
इस प्राचीन जैन मन्दिर की एक विशेषता
यह है कि इसमें स्थित खम्भों की गिनती कोई सही जिसमें अति मनोज्ञ आदिनाथजी की प्रतिमाजी ढंग से नहीं कर पाया। यहाँ एक और अद्भुत अतिशय विराजमान है तथा पास में विशाल नशियाँजी है जिसमें हुआ कि चार बार शान्तिनाथजी की पीतल की प्रतिमा चन्द्रप्रभ भगवान की पद्मासन विशाल प्रतिमा विराजमान चोर ले गये, लेकिन कुछ दिन बाद पुन: वापिस आकर है। उल्लेखनीय है कि यहाँ पर नशियाँजी में विराजमान वेदी पर विराजमान हो गये।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/53
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