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के दशरथ द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ किए जाने के से लेकर में लव-कुश द्वारा रामायण का गान, वाल्मीकि मुनि आगे तक की कथा सुनाते हैं। राम के राज्याभिषेक और द्वारा सीता के पातिव्रत्य का बखान और सीता के भरत को युवराज पद की प्राप्ति के साथ काव्य समाप्त पाताल प्रवेश एवं अन्य कारण से लक्ष्मण का भी होता है।
पाताल प्रवेश वर्णित है। सीता दृढ़, साहसी और अध्यात्म रामायण - एषत्तच्छनकत मलयालम स्पष्टवादिनी है। भाषा में १६वीं शती में रचित रामकथा है। सीता त्याग गिरधर रामायण - १८वीं शती में गुजराती इस ग्रन्थ में भी वर्णित नहीं है। शम्भूदेव पार्वती को कवि गिरधरदास ने रचना की। इसमें कृष्ण भक्ति व राम रामकथा सुनाते हैं। सीता मूल प्रकृति के रूप में पति भक्ति का समन्वय देखने को मिलता है। रामकथा का परमात्मा के सान्निध्य में जगत्सृष्टि करती है। समापन, श्रीकृष्णार्पणमस्तु के साथ किया गया है।
बंगला रामायण - १५वीं शती में कृत्तिवास सीता योगमाया व लक्ष्मीरूप एवं राम विष्णुरूप बताये द्वारा रचित है। इसमें सीता वनवास के तीन कारण १.
गये हैं। छाया सीता का हरण होता है। सीता निर्वासन लोकापवाद, २. रजक वृत्तान्त, ३. सीता द्वारा रावण
के कारण पूर्व में दिया गया शुक का शाप माना गया का चित्र बनाना बताये गये हैं। लव-कुश का राम से है। युद्ध होता है और अन्त में सीता पाताल में समा जाती ___ पंजाबी रामायण - १८६८ ई-१९४६ में पंजाबी है। राम सीता आदि का चित्रण सामान्य मानव चरित्र भाषा में श्री रामलभाया दिलशाद नेरचना की। रामकथा के रूप में मिलता है। सीता निर्वासन में तारा का शाप के कुछ मार्मिक और प्रभावशाली प्रसंगों का विस्तार उल्लेखनीय है।
व स्पष्टतापूर्ण वर्णन किया गया है। सीता निर्वासन, असमीया रामायण - १५वीं शती में श्री माधव लव-कुश का जन्म, अश्वमेध यज्ञ व सीता का पाताल कन्दली द्वारा रचित है। सीता निर्वासन के सन्दर्भ में प्रवेश इस ग्रन्थ में वर्णित है। राम, सीता आदि का तारा का शाप कारण है। लव-कुश के द्वारा रामायण लौकिक रूप में चित्रण है। रामकथा को पारलौकिकता गान और राम परिचय के पश्चात राम के समक्ष उपस्थित के रहस्यपूर्ण वातावरण से दूर लौकिकता के स्वच्छ सीता भयंकर क्रोध करती है और फिर पाताल में प्रविष्ट वायुमण्डल में प्रस्तुत किया गया है। हो जाती है।
भानुभक्तको रामायण - १९वीं शती में नेपाली उड़िया रामायण - १६वीं शती में बलरामदास भाषा में श्रीभानुभक्त द्वारा रचित है। द्वारा शिवपार्वती संवाद के रूप में रचित है। सीता की बौद्ध धर्म में रामकथा सम्बन्धी तीन जातक रक्षा हेतु लक्ष्मण तीन रेखाएँ खींचते हैं। तारा का शान, सुरक्षित हैं - दशरथ जातक, अनामकम् जातकम् एवं सीता का परित्याग व पाताल प्रवेश इसमें वर्णित है। दशरथकथानकम्। इसमें से दशरथ जातक अधिक राम के स्वर्ग प्रस्थान के समय सीता की स्वर्ण प्रतिमा प्रसिद्ध हुआ है। वामा होकर साथ जाती है और स्वर्ग में सीता को प्रणाम बौद्धों की भाँति जैनियों ने भी रामकथा को कर अदृश्य हो जाती है। नाथ परम्परा का प्रभाव और अपनाया है और यहाँ एक विस्तृत रामकथा साहित्य तन्त्र-मन्त्र का चित्रण मिलता है। सीता निर्वासन से उपलब्ध होता है। जैन रामकथाओं के प्रमुख पात्र राम दुःखी राम को लक्ष्मण योगदर्शन का उपदेश देते हैं। लक्ष्मण और रावण भी जैन धर्मावलम्बी माने गये हैं
भावार्थ रामायण - १६वीं शती में मराठी भाषा और इन्हें जैनियों के त्रिषष्टि महापुरुषों में भी गिना गया में एकनाथ ने रचना की। सीता निर्वासन, राम के यज्ञ है। साथ ही वानर एवं राक्षसों को विद्याधर वंश की
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/41
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