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मानवीय मूल्यों के सजग प्रहरी : जैनपुराण
होते हैं।
- पण्डित रतनचन्द भारिल्ल जैन पुराणों के मूल प्रयोजन और पावन उद्देश्यों इस चर्चा से यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि ये पर ज्यों-ज्यों गहराई से दृष्टिपात करता हूँ, गंभीरता से जीवात्मायें जन्म के पहले भी थे और मरण के बाद भी विचार करता हूँ तो मुझे इनकी विशाल दृष्टि, भव्य रहेंगे। जीवों का अस्तित्व अनादि-अनन्त है। वे कभी भूमिका, पावन उद्देश्य न केवल मानवीय मूल्यों के सजग नष्ट नहीं होते, मात्र उनकी पर्यायें पलटती हैं। प्रहरी की सीमा तक ही दिखाई देते हैं, बल्कि ये जैन इसी संदर्भ में जैन पुराणों में यह भी कहा गया है पुराण हमें मुक्तिमार्ग के मार्गदर्शक के रूप में भी दृष्टिगत कि परलोक के जीवन को सुखी बनाने के लिए मानव
को काम-क्रोध, मद-मोह, लोभ-क्षोभ आदि विकारी वस्तुतः जैन पुराण वर्तमान में मानव जीवन को भावों से बचकर इनका नाश करके दया, क्षमा, सफल, सुखद और यशस्वी बनाने में अत्यधिक उपयोगी निरभिमानता, सरलता, निर्लोभता, सत्य, शौच, संयम भूमिका निभाते हैं; क्योंकि ये मानव जगत को सदाचार आदि धर्मों का पालन करना चाहिए, अन्यथा भविष्य का संदेश तो देते ही हैं, नैतिकता का उपदेश भी देते हैं, में भव-भव में चार गति चौरासी लाख योनियों में सत्य अहिंसा मय आचरण करने का मार्गदर्शन भी करते भटकना होगा। हैं। इतना ही नहीं ये पारलौकिक जीवन को सुखमय मानवीय मूल्यों का तात्पर्य मानव के उन उच्च बनाने के लिए भी सार्थक हैं; क्योंकि ये पुण्य के फल एवं आदर्श गुणों से हैं, जिनका अनुकरण करने से मानवों में प्राप्त क्षणिक (नाशवान) सुखद संयोग एवं का गौरव बढ़ता है, घर में, समाज में, राष्ट्र में सम्मान दीर्घकालीन दुःखद पाप के उदय में प्राप्त फल बताकर बढ़ता है, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। ऐसे मानवीय मूल्यों के एवं उन दुःखद संयोगों से वैराग्य उत्पन्न कराकर जीवों धारक व्यक्ति के हृदय में स्वाभिमान और आत्मको मुक्तिमार्ग में लगाते हैं।
विश्वास पैदा होता है, उसकी सुशुप्त शक्तियाँ जाग्रत हो जैन पुराणों के कथानकों में शलाका पुरुषों के जाती हैं। फिर वह बड़े-से-बड़े कार्य करने में सक्षम हो वर्तमान जीवन परिचय के साथ उनके अनेक पूर्वभवों जाता है। की चर्चा भी होती है। उनमें बताया गया है कि वे इस जैनपुराण ऐसे मानवीय मूल्यों के सजग प्रहरी वर्तमान मानव जन्म के पहले कहाँ-कहाँ किन-किन तो हैं ही, और भी बहुत कुछ हैं उन पुराणों में, उनके योनियों में जन्म-मरण करते हुए दुःख भुगतते रहे हैं। अध्ययन, मनन, चिन्तन से यह आत्मा-परमात्मा बनने अपने-अपने पाप-पुण्य के अनुसार चारों गतियों में का पथ भी प्राप्त कर लेता है। जो व्यक्ति एक बार भी कैसे-कैसे उतार-चढ़ाव में जीते रहे हैं।
जैन पुराणों को श्रद्धा से पढ़ता है, उसके जीवन में महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/36
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