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लायसन (स्विट्जरलैण्ड) के सुप्रसिद्ध डॉक्टर इस प्रकार देश-विदेश के अनेक जैनेतर विद्वानों रोलियर ने दिगम्बरत्व का गहन अध्ययन कर नग्न एवं चिकित्सकों ने दिगम्बरत्व की मुक्तकंठ से प्रशंसा चिकित्सा-पद्धति का ही प्रचलन कर दिया है और की है। दुर्भाग्य से हम लोग अपने ही दिगम्बरत्व की अपनी इस चिकित्सा-पद्धति से अनेक प्रकार के रोगों गरिमा एवं महिमा भूलते जा रहे थे, किन्तु धन्य हैं वे का इलाज कर संसार में हलचल ही मचा दी है। उनका प्रात:स्मरणीय चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी कथन है कि - "हमारी चिकित्सा प्रणाली के प्रमुख महाराज, जिन्होंने इस सदी में अवतरित होकर हमारे अंग हैं -- (१) स्वच्छ वायु-सेवन, (२) नग्न रहकर में उस सिद्धान्त के विस्मृत गौरव को पुन: जागृत कर धूप-सेवन, (३) नग्न रहकर भ्रमण एवं (४) नग्न रहकर दिया है और हम अपने माथे को उन्नत कर गर्व के साथ दौड़ना।”
रह रहे हैं। इनसाइक्लोपीडिया-ब्रिटैनिका में भी दिगम्बरत्व यह परम प्रसन्नता का विषय है कि आचार्यके पक्ष में सुन्दर विचार व्यक्त किये गये हैं। डॉक्टरों का प्रवर पूज्य विद्यानन्दजी की प्रेरणा से समग्र जैनसमाज यह दीर्घकालीन अनुभव है कि जब से मनुष्य स्वाभाविक १९/७/०३ से उत्कृष्ट चारित्र एवं संयम के पावन (यथाजात) जीवन छोड़कर वस्त्रों में लिपटते गये, तभी प्रतीक चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी की से वे जुखाम, खाँसी, ज्वर एवं क्षय जैसी बीमारियों १३१वीं जयन्ती पूरे एक वर्ष तक “संयम-वर्ष" के के शिकार होते गये और अल्पजीवी होने लगे। रूप में मनाया। समाज के सर्वांगीण विकास के
जर्मनी के गेलेण्डे (Gelende) में तो एक ऐसा ऐतिहासिक क्रम का यह एक विशेष अध्याय का रूप स्थान बनाया गया है, जहाँ सैकड़ों नर-नारियाँ निर्विकार धारण करेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं। मन से नग्न रहते हुए उक्त पद्धति से स्वास्थ्य लाभ करने लगे हैं।
- बी-५/४०, सी. सेन्टर ३४, धवलगिरि, पो. नोयड़ा (उ.प्र.)
बहुगाणं संवेगो जायदि सोमत्तणं च मिच्छाणं ।
मग्गो य दीविदो भगवदो य आणाणुपालिया होदि॥२४८॥ अर्थ - बाह्य तप के प्रभाव से बहुत जीवों को संसार से भय उत्पन्न होता है। जैसे एक को युद्ध के लिये सजा तैयार देखकर अन्य अनेक जन भी युद्ध के लिये उद्यमी हो जाते हैं। वैसे ही एक को कर्म नाश करने में उद्यमी देखकर अनेक जन कर्म नाश करने के लिये उद्यमी हो जाते हैं तथा संसार पतन से भयभीत हो जाते हैं और मिथ्यादृष्टि जीवों के भी सौम्यता उत्पन्न होती है/सन्मुख हो जाते हैं। मार्ग/मुक्ति का मार्ग प्रकाशित होता है वा मुनि मार्ग दीपता हुआ प्रगट, दिखता है एवं भगवान की आज्ञा का पालन भी हो जाता है। अत: भगवान की यह आज्ञा है कि तप बिना काम, निद्रा, इन्द्रिय, विषय, कषाय नहीं जीते जाते, तप से ही कामादि जीते जाते हैं, और परमनिर्जरा करते हैं। इसलिए जिसने तप किया उसने भगवान की आज्ञा अंगीकार की।
- भगवती आराधना
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/19
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