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जैन दर्शन का पुनरावलोकन
डॉ. नारायणलाल कछारा
जीवन और जगत के प्रति जिज्ञासा मानव मन खोज ही जीवन का लक्ष्य माना गया है । जैन दर्शन में प्रारंभ से रही है । इस जिज्ञासा ने मानव चिंतन को में आत्मा को स्वतंत्र तत्व माना गया है और अन्य सत्य की खोज करने हेतु प्रेरणा प्रदान की । सत्यपरक दर्शनों में आत्मा को परम शक्ति ईश्वर या ब्रह्म का अंश इस चिंतन को दर्शन कहा गया है । जीवन और जगत माना गया है । इस प्रकार की अवधारणा भेद इस लक्ष्य के गंभीर रहस्य को समझना दर्शन की अपनी विशेषता को प्रभावित नहीं करता कि जीवन का लक्ष्य आत्महै। मानव-बुद्धि का जितना भी चिंतन है वह सभी दर्शन परिष्कार और आत्म कल्याण ही है। परन्तु जैन दर्शन के अन्तर्गत आता है । फिर भी व्यवहारिक दृष्टि से इस अन्य दर्शनों से इस दृष्टि से भिन्न है कि जैन दर्शन में चिंतन के भेद किये गये हैं। जीवन प्रधान चिंतन को आत्म-परिष्कार का समस्त पुरुषार्थ जीव को स्वयं ही दर्शन कहा गया है और भौतिक जगत प्रधान चिंतन को करना होता है कोई अन्य शक्ति उसकी सहायता नहीं विज्ञान कहा गया है। यह ज्ञान का व्यावहारिक वर्गीकरण कर सकती, जबकि अन्य दर्शनों में ईश्वर या देव की है, वस्तुतः विज्ञान को दर्शन से पृथक नहीं किया जा कृपा भी जीव को सहायता कर सकती है । जीवात्मा सकता क्योंकि जीवन का संबंध जगत से भी है। की स्वतंत्र सत्ता की मान्यता ने जैन दर्शन को वैज्ञानिक अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से विज्ञान ने विश्व को स्वरूप प्रदान किया और जीव के समस्त व्यवहार को तीन भागों में विभक्त किया है । भौतिक (Physi- कार्य कारणवाद के आधार पर व्याख्यायित किया गया cal), प्राण संबंधी (Biological) और मानसिक है। यह विशिष्टता जैन दर्शन को एक अलग श्रेणी में (Mental)। इन तीनों शाखाओं का ज्ञान ही आधुनिक खडा करती है । विगत तीन-चार सदी में विज्ञान ने विज्ञान का क्षेत्र है।
अभूतपूर्व प्रगति की है और विश्व के बारे में नवीन ज्ञान विश्व में दर्शन का जो विकास हुआ है उनमें प्रस्तुत किया है । यह नवीन ज्ञान, दर्शन के सम्मुख कुछ जीवन प्रधान हैं और कुछ में दोनों जीवन और चुनौती और अवसर दोनों ही प्रस्तुत करता है । चुनौती जगत संबंधी चिंतन का समावेश है । प्राचीन दर्शनों में इसलिए कि दर्शन को इस वैज्ञानिक ज्ञान के परिप्रेक्ष्य भारतीय और यूनानी दर्शन आते हैं, यूरोपीय और में भी अपने को प्रमाणित करना होगा और अवसर पाश्चात्य दर्शन का विकास लगभग आधुनिक विज्ञान इसलिए कि वैज्ञानिक ज्ञान की सहायता से पूर्व के विकास के साथ-साथ हुआ है और अतः उसमें मान्यताओं की नवीन व्याख्या की जा सकती है । जैन विज्ञान का प्रभाव स्पष्ट देखा जाता है। भारतीय और दर्शन के क्षेत्र में हाल ही में कछ ऐसे अध्ययन किए यूनानी दर्शन में भी वैज्ञानिक चिंतन का प्रवेश है परन्तु गये हैं जो जैन दर्शन की वैज्ञानिक श्रेष्ठता सिद्ध करने इसका प्रभाव सर्वत्र एक सा नहीं है। भारतीय दर्शन में सहायता करते हैं। प्रस्तत लेख में पहले विश्व के की एक विशिष्टता यह रही है कि सभी दर्शनों ने प्रमुख दर्शनों की संक्षिप्त जानकारी दी गई है और फिर (चार्वाक दर्शन के अतिरिक्त) परोक्ष या अपरोक्ष रूप जैन दर्शन की विशेषताओं का वैज्ञानिक स्वरूप प्रस्तुत से आत्म तत्त्व को मान्यता प्रदान की है। आत्मा की किया गया है।
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-2/64
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