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देखने वाले को देखने का उपाय
- बाबूलाल जैन, इंजिनियर डॉ. अलवर्ट आइन्सटाइन ने अपने अन्तिम व्यवहार और निश्चय नय के द्वारा आत्मा की समय में कहा था कि मैंने इस जीवन में बहुत कुछ जाना अनुभूति परोक्ष रूप से होती है। केवल शुद्ध आत्मा देखा, परन्तु देखने वाले को नहीं देखा। मैं उसे अगले का समावलोकन होता है मिथ्यात्व कर्म के उदय के भव में देख पाऊँ, यह मेरी अंतिम इच्छा है। अभाव में निश्चय सम्यग्दर्शन, निश्चय सम्यग्ज्ञान की
देखने वाले को देखने का मार्ग जिनागम में उत्पत्ति होती है और चारित्र मोहनीय के उदय के अभाव समयसार, नियमसार ग्रन्थों में बहत विस्तत रूप से में सम्यक् चारित्र की वृद्धि होती है। इनके माध्यम से बताया गया है। मोहनीय कर्म ने आत्मा को देखने ही सम्यक् ज्ञायक स्वभाव की अनुभूति होती है। वही जानने की शक्ति का आवरण कर रखा है। वह दो प्रकार आत्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति है, उसी समय यह जीव का है - १. दर्शन मोहनीय, २. चारित्र मोहनीयः। दर्शन शुद्ध आत्मा को अर्थात् जानने वाले को जानता है। मोहनीय के उदय से इस जीव को मिथ्या भ्रान्ति रहती आत्मतत्त्व की श्रद्धा उत्पन्न होने पर ही मिथ्यात्व है तथा चारित्र मोहनीय के उदय से इस जीव के निरन्तर कर्म का विध्वंस करने वाली सच्ची व्यवहारात्मक दृष्टि क्रोध, मान, माया, लोभ के परिणाम होते रहते हैं। इन उत्पन्न होती है। अत: जिनागम में कहे गये छह द्रव्य, परिणामों का अभाव होने पर ही सम्यग्दर्शन-ज्ञान- सात तत्त्व, देव-शास्त्र-गुरु का श्रद्धान होना अनिवार्य चारित्र की प्राप्ति हो सकती है, तब ही यह जीव शुद्ध है, उसी के बल पर दर्शन मोहनीय कर्म की फलदान आत्मा की अनुभूति कर सकता है।
शक्ति हीन होकर उदीरणा होती रहती है। उनका अत्यन्त (१) अतः प्रथम सम्यक् व्यवहार से मिथ्या
हीन उदय होने पर उस समय यह जीव मतिज्ञान, व्यवहार को नाश करें। व्यवहार सायन-जात- श्रुतज्ञान को बहिरंग प्रवृत्ति से समेटकर आत्मा के चारित्ररूप निरन्तर परिणाम करने से दर्शन मोहनीय
सम्मुख करता है, तब मिथ्यात्व कर्म का उपशम होना प्रकति का अनुभाग अनन्तगुणा हीन होकर उदीरणा हो प्रारभ हा जाता है। जाती है। उससे दर्शन मोहनीय कर्म की फलदान शक्ति मतिज्ञान, श्रुतज्ञान में इतनी शक्ति है कि वह बहुत हीन हो जाती है।
अपनी आत्मा को भी अपना ज्ञान का विषय बना लेता (२) निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के द्वारा
है। इसके लिए यह मानना जरूरी है कि भगवान महावीर व्यवहार सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की निवृत्ति होती है। का कहा गया आगम सर्वज्ञ प्रणीत है। अतः भगवान (३) परम-पारिणामिकभाव-स्वभाव के द्वारा
महावीर सर्वज्ञ थे, यह हम सिद्ध करते हैं। निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की निवृत्ति हो जाती
सर्वज्ञ की सिद्धि - है। तब ही यह जीवन नयातीत होकर प्रत्यक्ष शुद्ध भगवान महावीर द्वारा कहे गये जिनागम की आत्मा की अनुभूति करता है।
परीक्षा करना चाहिए। जिनागम परीक्षा प्रधान आगम
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-2/40
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