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बौद्धदर्शन की दृष्टि से व्यक्ति एवं समाज
दृष्टिदंष्ट्रावभेदं च भ्रंशं चावेक्ष्य कर्मणाम् । देशयन्ति जिना धर्मं व्याघ्रीपोतापहारवत् ॥ आत्मास्तित्वं ह्यपगतो भिन्नः स्याद् दष्टिदंष्ट्रया । भ्रंशं कुशलपोतस्य कुर्यादप्राप्य संवृतिम् ॥
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( अभि० कोश०, पृ० १२९१ में उद्धृत)
कुमारलात सौत्रान्तिक आचार्य हैं और इस प्रकार उनके मत से भी पुद्गल का सांवृतिक अस्तित्व सिद्ध होता है । अर्थात् पुद्गल खपुष्प की भाँति नितान्त असत् भी नहीं है और न उसका द्रव्यतः अस्तित्व ही है । अपितु कर्म - कर्मफल व्यवस्था के लिए उसका व्यावहारिक अस्तित्व स्वीकार करना आवश्यक है ।
योगाचार मत के अनुसार भी पुद्गल प्रज्ञप्तिसत् ही सिद्ध होता है । मानुष्यकसूत्र में भगवान् ने कहा है कि 'अस्ति सत्त्व उपपादुक:' अर्थात् उपपादुक सत्त्व होता है । दूसरी जगह क्षुद्रकागम में उन्होंने कहा कि 'नास्तीह सत्त्व आत्मा वा धर्मास्त्वेते सहेतुकाः' अर्थात् सभी धर्म अपने हेतु प्रत्ययों से उत्पन्न होते हैं, कोई सत्त्व या आत्मा नामक वस्तु नहीं होती । इन परस्पर विरोधी वचनों में समन्वय स्थापित करने के लिये योगाचारों ने कहा है कि भगवान् बुद्ध की देशना दो प्रकार की होती है, यथानेयार्थदेशना एवं नीतार्थदेशना । नेयार्थदेशना वह है, जिसमें शब्दों का अर्थ वैसे ही नहीं गृहीत किया जाता, जैसे उन शब्दों से ध्वनित होता है, अपितु उनके अभिप्राय IT अन्वेषण किया जाता है । इस देशना को आभिप्रायिकी देशना भी कहते हैं ।
तार्थ देशना वह होती है, जिसका अर्थ देशना में प्रयुक्त शब्दों के अनुसार ही लिया जाता है । पहला वचन, जिसका अर्थ है, उपपादुकसत्त्व होता है, बुद्ध की नेयार्थ देशना है । अर्थात् ऐसा भगवान् ने अभिप्रायवश कहा है । अभिप्राय यह है कि उच्छेदवादियों ने, जो पूर्वापर जन्म एवं कर्म-कर्मफल व्यवस्था नहीं मानते, भगवान् से पूछा कि 'सत्त्व होता है या नहीं ? यदि भगवान् उनसे यह कहें कि 'सत्त्व नहीं होता', जो कि वस्तुस्थिति है, तो इससे उनकी मिथ्यादृष्टि और अधिक पुष्ट होगी और वे कर्म-कर्मफल का अपवाद जोरदार ढंग से करने लगेंगे, फलतः उनका अधःपात होगा, जो कि इष्ट नहीं है । भगवान् बुद्ध यद्यपि नित्यसत्त्व नहीं मानते, फिर भी जीवनधारा का सतत प्रवाह तो मानते ही हैं । मृत्यु के अनन्तर और दूसरी योनि में जन्मग्रहण के बीच एक अवस्था होती है, जिसे अन्तराभव कहते हैं । इस अवस्था का जीव, पूर्व जीवन की ही अगली धारा है, किन्तु माता-पिता या गर्भ से उत्पन्न नहीं होता तथा पूरा का पूरा व्यक्ति एक साथ उत्पन्न हो जाता है । मोटे तौर पर
ऐसा लगता है
परिसंवाद - २
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