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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएँ रविषेणाचार्य ने जाति व्यवस्था का खण्डन किया है। पद्मपुराण में किसी भी जाति को निन्दनीय नहीं बताया गया है। सभी में समानता का दर्शन कराके गुण को कल्याणक माना है। यही कारण है कि व्रती चाण्डाल को गणधरादि देव ब्राह्मण कहते हैं। रविषेणाचार्य ने ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ता तथा चाण्डाल के प्रति समता का दृष्टिकोण अपनाया है। जैन पुराणों में सभी के प्रति समता का भाव दिखाया गया है। इसीलिए श्री गणेश मुनि ने कहा है कि पहले वर्ण व्यवस्था में ऊँच-नीच का भेद-भाव नहीं था। जिस प्रकार चार भाई कोई काम आपस में बाँटकर सम्पादित करते हैं, उसी प्रकार चातुर्वर्ण्य व्यवस्था भी थी। कालान्तर में इस व्यवस्था के साथ ऊँच-नीच का सम्बन्ध जुड़ गया, जिससे विशुद्ध सामाजिक व्यवस्था में भावात्मक हिंसा का सम्मिश्रण हो गया। जैन पुराणों के अनुसार चारों वर्गों का विभाजन आजीविका के आधार पर हुआ है। यही कारण है कि जैन पुराणों में लोगों को अपनी-अपनी आजीविका सम्यक् ढंग से प्रतिपादित करने की व्यवस्था की गई है। यदि कोई ऐसा नहीं करता तो उसे दण्ड देने की भी व्यवस्था की गई है। क्योंकि इससे वर्ण-संकरता को रोका जा सके।
___ जैनाचार्यों ने सभी को समानता के आधार पर रखा है। उन्होंने सभी के साथ समान न्याय की व्यवस्था की है। यही कारण है कि ब्राह्मणों को जो विशेषाधिकार मिला था उसका पतन हुआ और समानता के आधार पर समाज का पुर्नगठन किया गया। यदि ब्राह्मण चोरी करते हुए पकड़ा जाता था तो उसे देश से निकाल देने की व्यवस्था की गई थी।
१. पद्मपुराण ॥ १९५-२०२ २. न जातिहिता काचिद् गुणाः कल्याणकारकम् । व्रतस्थमपि चाण्डालं तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥
पद्मपुराण ११, २०३, महापुराण ७४, ४८८-४९५ तुलनीय-महाभारत शान्तिपर्व १८९, ४-५, वराङ्गचरित २५, ११ । ३. पद्मपुराण ११, २०४ । ४. गणेश मुनि-प्रागैतिहासिक व्यवस्था का मूल रूप, जिनवाणी' जयपुर १९६८, वर्ष २५,
अंक १२, पृ०९। ५. महापुराण ३८, ४६, पद्मपुराण ११, २०१, हरिवंशपुराण , तुलनीय-विष्णु
पुराण १, ६, ३-५, वायुपुराण ९, १६०-१६५ । ६. हरिवंशपुराण १४-७, महापुराण १६-२४८ । ७. महापुराण ७०-१५५, तुलनीय-हरिवंशपुराण २७, २३-४१ ।
परिसंवाद-२
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