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भारतीय चिन्तन की परम्परा में नवीन सम्भावनाएँ
मनुस्मृति में शूद्र को शिक्षा देने, धर्मोपदेश करने, और व्रत का आदेश देने का निषेध करते हुए कहा गया है कि जो उसे धर्म का उपदेश करता है और व्रत का आदेश देता है वह उसी के साथ नरक-वास करता है
शङ्कर के सूत्र के प्रति दृष्टिकोण की उनके अद्वैत ब्रह्मवाद से विसंगति स्पष्ट है । किन्तु प्रश्न नया नहीं है । माधवीय शङ्करदिग्विजय के अनुसार एक बार शङ्कर ने अपने मार्ग में एक अन्त्यज़ को देखकर 'दूर हटो, दूर हटो' कहा था। इस पर अन्त्यज ने उनके ब्राह्मण- श्वपच भेद विचार को पाखण्ड बताते हुए उन्हें आड़े हाथों लिया, और शङ्कर को उसकी सत्यता स्वीकार करते हुए कहना पड़ा कि अभेद बुद्धि से युक्त चाण्डाल मेरा भी गुरु है ।
धर्मशास्त्र आदि में शूद्र के प्रति कई घृणासूचक और अपमानजनक शब्दों का प्रयोग हुआ है, जो समतामूलक जीवन-दृष्टि से सर्वथा बेमेल है । शतपथ ब्राह्मण के अनुसार स्त्री, शूद्र, कुत्ता, काला पक्षी, अनृत हैं, इन्हें देखना नहीं चाहिए - 'अनृतं स्त्री, शूद्रः, श्वा, कृष्णः शकुनिः । तानि न प्रेक्षेत । आपस्तम्ब के अनुसार शूद्र और पतित व्यक्ति श्मशान के तुल्य होते हैं, अतः उनके समीप वेदाध्ययन नहीं करना चाहिए - ' श्मशानवच् छूद्र- पतितौ' । अन्यत्र शूद्र को चलता-फिरता श्मशान कहा गया है और इसी आधार पर उसके समीप वेदाध्ययन का निषेध किया गया है'पशु वा एतच् श्मशानं यच् छूद्रः । तस्माच् छ्रद्रसमीपे नाध्येतव्यम्' ।" मनु तो हद्द कर देते हैं । वे कहते हैं कि बिल्ली, नेवले, नीलकण्ठ पक्षी, मेंढक, कुत्ते, गोह, उलूक कौए की हत्या करने पर शूद्रहत्याव्रत का अनुष्ठान करना चाहिए
मार्जार-नकुलौ हत्वा चाषं मण्डूकमेव च । श्व-गोधोलूक-काकांश च शूद्रहत्याव्रतं चरेत् ॥ मानो शूद्र और पशु समान हैं ।
न शूद्राय मतिं दद्यान्, नोच्छिष्टं, न हविष्कृतम् । न चास्योपदिशेद् धर्मं, न चास्य व्रतमादिशेत् ॥ यो ह्यस्य धर्ममाचष्टे यश् चैवादिशति व्रतम् । सोऽसंवृतं नाम तमः सह तेनैव मज्जति ॥ '
परिसंवाद - २
१. मनु० ४.८०-८१ ।
३. शतपथ ब्राह्मण १४।१।१।३१ ।
४. आपस्तम्ब धर्मसूत्र १।९।९ तु० याज्ञवल्क्य स्मृति १।१४८ ।
५. शबर, शङ्कर, आदि द्वारा उदाहृत । शदर भाष्य ६।१।७।३८, पृ० १३८१ ।
शारीरक भाष्य १।३।९।३८, पृ० २८० ।
६. मनु० ११।१३१ ।
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२. शङ्करदिग्विजय —६.२५-३८ ।
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