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प्राचीन संस्कृत-साहित्य में मानव समता
२३३ उस समय तक स्त्रियों को वैदिक मन्त्रों के उच्चारण का अधिकार उपलब्ध था। कामसूत्र से भी स्त्रियों की सामान्य शिक्षा का परिज्ञान होता है। आचार्य वात्स्यायन ने नवपरिणीताओं के प्रेम-पत्र की चर्चा की है। कविता-कामिनी के विलास महाकवि कालिदास के काल तक भी, आज की ही भाँति, प्रेम-पत्र की परिपाटी का पर्याप्त प्रचलन था। जगद्विदित नाटक 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' में नायिका शकुन्तला के द्वारा दुष्यन्त को प्रेम-पत्र लिखने की चर्चा की गई है।
किन्तु बड़े दुःख के साथ लिखना पड़ता है कि जो नारियाँ मन्त्रद्रष्टा थीं, ऋग्वेद की निर्मात्री थीं, जो वैदिक ऋचाओं से दूसरों को पावन करने की क्षमता रखती थीं, पावन अवसरों पर जिन्हें वैदिक मन्त्रों के उच्चारण का पूर्ण अधिकार प्राप्त था, वे ही बाद में वैदिक साहित्य के प्रभाव के ह्रासोन्मुख होने पर तथा स्मृतियों के उद्गम काल तक आते-आते वैदिक मन्त्रों के उच्चारण के भी अधिकार से वंचित कर दी गईं। उनका वेदाध्ययन तथा मन्त्रोच्चारण आदि का अधिकार छीन लिया गया । वेदों के अध्ययन तथा संस्कारों आदि की दृष्टि से उनकी गणना शूद्रों की श्रेणी में की जाने लगी। प्रायः सभी स्मृतियाँ, पुराण तथा महाभारत स्त्रियों के वेदाध्ययन के निषेध के बारे में एक मत हैं। यद्यपि कालान्तर में स्त्रियों को वैदिक अधिकार से वंचित कर दिया गया था, किन्तु उनका सामान्य अध्ययन फिर भी अबाध गति से चलता रहा। सहशिक्षा
इस देश में संहिताकाल से लेकर सूत्र-काल (६०० ई० पू० से ई० सन्० के आरम्भ) पर्यन्त स्त्री शिक्षा का प्रसार प्रचुरमात्रा में था। यतः स्त्री शिक्षा के लिये कहीं भी अलग विधान नहीं मिलता, इससे प्रतीत होता है कि बालक एवं बालिकाएँ सभी एक ही गुरु के समक्ष बैठकर साथ-साथ शिक्षा ग्रहण किया करते थे। गुरु से उप-श पाते और अपने भविष्य का निर्माण करते थे। सह शिक्षा की झलक हम भवभूति के 'मालती माधव' रूपक में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं । विवाह
ऋग्वेद के परिशीलन से यह विदित होता है कि लड़कियों को स्वयं वर चुनने का अधिकार प्राप्त था। इससे यह भी प्रतीत हो जाता है कि लड़कियाँ वयस्क हो
१. शाकुन्तलम्-३।१२-१३ २. स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुतिगोचरा । भागवत १।४।२५ । ३. 'अयि, किं न वेत्सि यदेकत्र नो विद्यापरिग्रहाय नानादिगन्तवासिनां साहचर्यमासीत् ।' (प्रथम अंक)।
४. ऋग्वेद १०।२७।१२।
परिसंवाद-२
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