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समाज व्यवस्था में अनेकान्त
१. न गरीबी और न विलासिता का जीवन
२. संतुलित समाज - व्यवस्था
३. आवश्यकता की संतुष्टि के लिए धन का अर्जन किंतु दूसरों को हानि पहुंचाकर अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि न हो, इसका जागरूक प्रयत्न। ४. विसर्जन की क्षमता का विकास आदि ।
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दुःख मुक्ति एवं मानसिक शांति के लिए इच्छाओं का अल्पीकरण बहुत आवश्यक है। दशवैकालिक सूत्र में कहा गया- 'कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं" इच्छाओं का अतिक्रमण करो दुःख अपने आप अतिक्रमित हो जायेगा। लाभ से लोभ घटता नहीं वह बढ़ता है। यह अनुभूत सत्य का प्रतिपादन है । इच्छाएं आकाश के समान अनन्त हैं। लोभी सोने चांदी के ढेर से भी संतुष्ट नहीं हो सकता । अनेकान्त का समाज व्यवस्था में अर्थ होगा 'संतुलन' । इच्छा को सर्वथा समाप्त भी न किया जाय तथा उसका अत्यधिक विस्तार भी न हो। दोनों संतुलन अत्यन्त अपेक्षित हैं। संतुलित समाज व्यवस्था अनेकान्त के द्वारा ही घटित हो सकती है भले फिर उसका नामकरण कुछ भी किया जाये।
यंत्रों की अवधारणा में अनेकान्त
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आज प्रोद्यौगिकी का बहुत विकास हुआ है। मनुष्य प्रस्तर युग से परमाणु युग में पहुंच गया है। विज्ञान के विकास ने आज मनुष्यों को सुख-सुविधाओं के अनेकों साधन प्रदान किये हैं। इस तथ्य को ओझल नहीं किया जा सकता । किन्तु विज्ञान का सदुपयोग बहुत कम हुआ है। उसका प्रयोग विध्वंसात्मक कार्यक्रमों में अधिक हो रहा है। यंत्रों ने मानवजाति को राहत से ज्यादा तनाव की जिन्दगी प्रदान की है। गांधी ने तीन प्रकार के यंत्रों का उल्लेख किया है। विध्वंसक, मारक एवं तारक। विध्वंसक बम आदि इनका सर्वथा निर्माण बन्द होना आवश्यक है। मारक यंत्र जो बेरोजगारी पैदा करते हैं, तारक यंत्र सिलाई मशीन आदि। गांधी जी विज्ञान के विरोधी नहीं थे। उन्होंने विवेक देने की कोशिश की। उनका मानना था यंत्र मनुष्य के लिए है मनुष्य यंत्र के लिए नहीं है। आज प्राद्यौगिकी के अत्यधिक विकास के कारण पर्यावरण प्रदूषण का खतरा भयावह संकट पैदा कर चुका है। ओजोन की छतरी में छेद हमारे सुरक्षा व्यवस्था में छेद है। अनावश्यक यंत्रीकरण ने समस्या पैदा किया है। आधुनिक वातावरण के प्रति जागरूक लेखकों ने भविष्य के संकट को सामने रखकर आगाह किया है। टाफ्लर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'Future shock' में अतियान्त्रिक विकास और अति प्रोद्यौगिकी के भयावह परिणामों से आगाह करते हुये निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि "भविष्य के भयंकर खतरों के निरोध के लिए हमें परम औद्योगिक समाज के
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