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Multi-dimensional Application of Anekäntavāda
प्रतिष्ठित है। इसके कोर्ट में विभिन्न वादार्थी अपने-अपने वाद को प्रतिष्ठित करने हेतु होते हैं तथा अपना-अपना पक्ष प्रस्तुत करते हैं और अंत में अनेकान्त दर्शन सबकी समीक्षा करते हुए अपना निर्णय सुनाता है। प्रत्येक वस्तु अपना जुदा-जुदा स्वभाव रखती है और वह स्वभाव अपनी ही वस्तु में रहता है परवस्तु में नहीं रहता। यदि ऐसा नहीं माना जायेगा तो आग, पानी हो जायेगा और पानी, आग हो जायेगा। कपड़ा, मिट्टी हो जायेगी और मिट्टी, कपड़ा हो जायेगा। कोई भी वस्तु अपने स्वभाव में स्थिर नहीं रह सकेगी। अब अनेकान्त के कोर्ट में प्रतिवादी से प्रश्न पूछा जाता है क्या हम सामने रखे हुए घड़े को भी असत् कह सकते हैं? इस प्रश्न से प्रतिवादी भ्रम में पड़ जाता है कि सामने रखे हुए घड़े को असत् कैसे कहा जा सकता है लेकिन फिर उसको याद दिलाया जाता है कि घड़ा स्व स्वभाव की अपेक्षा हो तो उसे सत् कहा जाता है पर वस्तु के स्वभाव की अपेक्षा तो दुनियाँ की प्रत्येक वस्तु असत् है। इसलिए यह निर्णय हुआ कि किसी अपेक्षा से घट होते हुए भी असत् है क्योंकि सर्वथा सत् एवं सर्वथा असत् कोई वस्तु हो ही नहीं सकती। हाँ ! अपेक्षावाद के सूचक 'स्यात्' शब्द का विनियोजन कर दिया जाय तो कहा जा सकता है कि द्रव्य कथंचित् सत् तथा कथंचित् असत् है।
__ आचार्य समन्तभद्र ने इस प्रकार के न्यायालय की अपनी आप्तमीमांसा में व्यवस्था की है जिसमें सभी वादियों के तर्कों का अनेकान्त-स्याद्वाद के आधार पर निराकरण किया है और अपने पक्ष में सबल प्रमाण दिये हैं। व्यवस्थापक का पद
___ अनेकान्त दर्शन व्यक्तिगत एवं समाजगत झगड़ों, कलह एवं विरोधी भावनाओं को दूर कर परस्पर सौहार्द उत्पन्न करता है। यदि किसी वस्तु को लेकर दो व्यक्तियों में झगड़ा हो रहा हो, समाज के दो वर्गों में आग्रह के कारण अशांति बनी हुई है, तो अनेकान्त विचारधारा के माध्यम से दोनों पार्टियों में सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है। राष्ट्रों के बड़े-बड़े विवाद मिटाये जा सकते हैं।
__ जैसे दो आदमी बाजार में सामान खरीदने के लिए जाते हैं। वहाँ किसी वस्तु को एक व्यक्ति अच्छी बतलाता है तो दूसरा उसे बुरी बतलाता है। दोनों में बात बढ़ जाती है और झगड़े की नौबत आ जाती है तब दुकानदार अथवा कोई राहगीर दोनों को समझाते हए कहता है कि भाई लड़ते-झगड़ते क्यों हो। यह चीज अच्छी भी है और बुरी भी है । तुम्हारे लिए जो वस्तु अच्छी है और उसके लिए बुरी हो सकती है। अपनीअपनी दृष्टि है। सामाजिक समीकरण के लिए उत्तम साधन
अनेकान्तवाद से सामाजिक समीकरण बिठाये जा सकते हैं। वर्तमान जैन
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