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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
श्वेतवसन अपराध की श्रेणी में आते हैं।
इस प्रकार अपराध अनेक रूपों में बढ़ रहे है। उनके कारणों की अनेक खोजें हो रही हैं तथा अपराध रोकने के अनेक उपाय भिन्न-भिन्न अपराधियों को घर में रखते हुए किए जा रहे हैं और यह धारणा बलवती होती जा रही है कि अधिकांश अपराधियों को सुधारा जा सकता है। यह सब अनैकान्तिक दृष्टि के प्रयोग के बिना सम्भव नहीं है। अपराधियों के विषय में आए चिन्तन के परिवर्तन से कारागार व्यवस्था में प्रमुख रूप से निम्नलिखित सुधार हुए हैं
१. कारागारों में भोजन, शयन एवं कार्य की दशाओं में सुधार । २. कारागारों में चिकित्सालयों की स्थापना। ३. जघन्य अपराधियों के लिए निर्जन वास की व्यवस्था। ४. अपराधियों का अपराधों की प्रकृति के अनुसार वर्गीकरण ५. कारागार अधीक्षक एवं निरीक्षकों के रूप में प्रशिक्षित व्यक्तियों की नियुक्ति। ६. आकस्मिक एवं आदतन अपराधी के रूप में वर्गीकरण। ७. बन्दियों को निरीक्षकों की भूमिका कम से कम प्रदान करना । ८. अपराधी परिश्रम का उद्देश्य यातना नहीं, वरन् पुनर्निमाण एवं सुधार होना
चाहिए। ९. अपराधी को अपने सम्बन्धियों से कारागार में मिलने की छूट होना चाहिए। १०. कारागार में पुस्तकालयों की स्थापना । ११. पच्चीस वर्ष से कम के अपराधी को शिक्षा जारी रखने की सुविधा । १२. पेरोल पर छोड़ने की व्यवस्था । १३. रिहा होने पर अपराधियों के पुनर्व्यवस्थापन में सहायता प्रदान करना । १४. अपराधियों को कोड़े लगाने जैसे अमानवीय दण्ड न देना । १५. मुत्युदण्ड के औचित्य, अनौचित्य का चिन्तन । १६. अपराधी जीवन के लिए समाज ही उत्तरदायी है अत: उसके साथ
सहानभूतिपूर्ण व्यवहार। सन्दर्भ१. सन्मतिप्रकरण (प्रस्तावना) पृ०८४ २. अष्टशती पृ० २८६, ३. यदेवतत् तदेव अतत्, यदैवैकं तदेवानेकम् .........
समयसार (आत्मख्याति टीका) १०/२४७ ४. षड्दर्शनसमुच्चय, डॉ. महेन्द्र कुमार 'न्यायाचार्य' कृत व्याख्या पृ०३६० ५. षड्दर्शनसमुच्चय, हरिभद्र सूरि पृ०३६५-३६६
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