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सप्तभंगी बहुमूल्यात्मक तर्कशास्त्र के सन्दर्भ में
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माना है। सप्तभंगी के प्रत्येक भंग का अपना स्वत: स्थान और स्वतन्त्र मूल्य है। वस्तुत: प्रत्येक भंग के अर्थोद्भावन में इस विलक्षणता के आधार पर ही सप्तभंगी को सप्तमूल्यात्मक कहना सार्थक हो सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि सप्तभंगी के प्रत्येक भंग में भिन्न-भिन्न तथ्यों की प्रधानता है। प्रत्येक भंग वस्तु के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता हैं। इसलिए सप्तभंगी के सातों भंग एक दूसरे से स्वतन्त्र हैं, किन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सप्तभंगी के प्रत्येक कथन पूर्णत: निरपेक्ष हैं। वे सभी सापेक्ष होने से एक दूसरे से सम्बन्धित भी हैं, ऐसा मानना चाहिए। किन्तु जहाँ तक उनके परस्पर भिन्न होने की बात है, वहां तक तो वे अपने-अपने उद्देश्यों को लेकर ही परस्पर भिन्न हैं। इस प्रकार सप्तभंगी का प्रत्येक कथन परस्पर सापेक्ष होते हुए भी परस्पर भिन्न है। इसलिए प्रत्येक भंग का अपना अलग-अलग मूल्य (Value) है।
___अब यहाँ संक्षेप में 'मूल्य' (Value) शब्द को भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है। आधुनिक तर्कशास्त्र में सभी फलनात्मक क्रियाएं (Functional Activities) सत्यता मूल्यों (TruthValues) पर ही निर्भर करती हैं। आधुनिक तर्कशास्त्र के सभी फलन (Function) प्रकथन (Proposition) की सत्यता-असत्यता का निर्धारण करते हैं । आधुनिक तर्कशास्त्र का यह मानना है कि प्रकथन जो किसी वस्तु या तथ्य के विषय में है, वह या तो सत्य है अथवा असत्य। सामान्य तर्कशास्त्र मूलरूप से इन्हीं दो कोटियों को मानता है। किन्तु आधुनिक तर्कशास्त्र के अनुसार सत्य-असत्य की भी अनेक कोटियां हो सकती हैं, जिन्हें भिन्न-भिन्न सत्यता मूल्यों से सम्बोधित किया जाता है। आधुनिक तर्कशास्त्र में उन्हीं मूल्यों को सत्यता-मूल्य (Truth Value) कहते हैं, जिस प्रकथन के सत्य होने की जितनी अधिक संभावना होती है, उसका उतना ही अधिक सत्यता-मूल्य होता है। जैसे यदि कोई तर्कवाक्य (प्रकथन) पूर्णतः सत्य है, तो उसका सत्यता-मूल्य पूर्ण होगा। उसे आधुनिक तर्कशास्त्र में सत्य (True) या '१' से सम्बोधित करते हैं और जो पूर्णत: असत्य है, उसे असत्य (False) अथवा '०' से सूचित किया जाता है। इसी प्रकार जो संभावित सत्य है, उसे उसकी संभावना के आधार पर १/२, १/३, १/४ आदि संख्याओं या संदिग्ध पद से अथवा किसी माडल से अभिव्यक्त किया जाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि तर्कवाक्य में निहित सत्य की संभावना को सत्यता-मूल्य कहते हैं। यद्यपि असत्यता (Falsity) भी मूल्यवत्ता से परे नहीं है। असत्यता भी सत्यता (Truth) की ही एक कोटि है। जब सत्यता घट कर शून्य हो जाती है, तब वहाँ असत्यता का उद्भावन होता है। वस्तुतः असत्यता को सत्यता की अन्तिम कड़ी कहना चाहिए। इस असत्यता और सत्यता (जो कि सत्यता की पूर्ण एवं अन्तिम कोटि है) के बीच जो सत्य की संभावना होती है,
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