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मन की शान्ति-अनेकान्त दृष्टि से
डॉ० सुरेश झवेरी
आज इस वैज्ञानिक युग में मन की शान्ति का अहं प्रश्न है। इस सन्दर्भ में हमें यह जानना चाहिए कि हमारा मन किन-किन प्रभावों से कितना और कैसे प्रभावित होता है। मन, द्रव्य, काल, क्षेत्र, भाव और भव से भी प्रभावित होता है। ज्योतिषविज्ञान का विकास ग्रह नक्षत्रों के मानव जीवन पर पड़ने जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए हुआ था। किन्तु आज उसका रूप बदल गया है। वह केवल फलित में सुलझ गया है। मनुष्य के लिए जितनी सम्पदा इस पृथ्वी पर है, उससे कम अन्तरिक्ष में नहीं है। मनुष्य पर पृथ्वी का जितना प्रभाव पड़ता है अन्तरिक्ष का प्रभाव उससे कम नहीं पड़ता बल्कि आदमी अन्तरिक्ष से अधिक प्रभावित होता है। अन्तरिक्ष में जैसा सौरमण्डल है वैसा सौरमंडल प्रत्येक मनुष्य के शरीर में है। ग्रहों और अन्तर्ग्रहों का बहुत गहरा संबंध है, मनुष्य जीता है ऋतुचक्र के साथ।
ऋतुओं का एक चक्र है। भारत में छ: ऋतुओं का विकास हुआ और उन ऋतुओं से मनुष्य का जीवन जुड़ा है। जैसे ऋतुचक्र बदलता है, हमारा स्वास्थ्य, मन
और भाव बदलता है। यह आयुर्वेद और अध्यात्म का मिला जुला योग है। ऋतु के साथ भोजन का परिवर्तन स्वास्थ्य और मन की शान्ति के लिए आवश्यक है।
वर्ष के दो अयन है- उत्तरायन और दक्षिणायन । हमारे मन के भी दो अयन हैं- तपस्या, त्याग-तेजस्विता मन का उत्तरायन है तथा जड़ता, वक्रता और प्रमाद मन का दक्षिणायन है। आकल्ट साइंस में दो ध्रुवों की चर्चा है- उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रव। दोनों ध्रुवों का मन के साथ गहरा सम्बन्ध है। रीढ़ की हड्डी के ऊपर का भाग ज्ञान केन्द्र-उत्तरी ध्रुव और निचला भाग-काम केन्द्र दक्षिणी ध्रुव है। इस प्रकार ऋतुओं और अयनों के साथ उनका सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। उपाध्याय मेघविजयजी ने अपने ग्रन्थ अर्हत् गीता में ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से मानसिक स्थितियों का सूक्ष्म विश्लेषण
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