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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
संबंध आज मार्क्स के साथ जुड़ा हुआ है और वह उसी का माना जाता है। मार्क्स ने अपने इस वाद को आत्मा एवं अणु तक ही सीमित नहीं रखा, किन्तु उसे राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक आदि जीवन के सभी प्रमुख पहलुओं पर कसा। आइए देखें- 'जड़ के आन्तरिक संघर्ष के परिणामस्वरूप होने वाले गुणात्मक परिवर्तन से चेतना का उदय होता है', मार्क्सवाद का यह निर्भीक कथन तर्क व यथार्थता की कसौटी पर कहां तक खरा उतरता है। विरोधी समागम- (Unity of Opposition)
दो विरोधी पदार्थों का मिलन ही विरोधी समागम नहीं किन्तु मार्क्स के कथनानुसार एक ही पदार्थ में दो विराधी गुणों (स्वभावों) की अन्तर्व्यापकता विरोधी समागम है। वे दो विरोध एक ही समय तक वस्तु में अभिन्न होकर रहते हैं । इस विरोधी समागमता को मार्क्सवादी अपने दर्शन की अपूर्व देन मानते हैं। विभिन्न तार्किकों के द्वारा यह तर्क उठाने पर कि एक वस्तु में दो विरोधी स्वभाव नहीं ठहरते, वे बहुत से व्यावहारिक उदाहरणों द्वारा अपने अभिमत तत्त्व का समर्थन करते हैं। वे हीगल के तर्कशास्त्र से कुछ उदाहरण लेते हैं, जैसे - "जो कर्जदार के लिए ऋण (देन) है वही महाजन के लिए धन (पावना) है। हमारे लिए जो पूर्व का रास्ता है, दूसरे के लिए वही पश्चिम का रास्ता है।'' प्लेटो की निम्न युक्ति को वे अपने समर्थन में प्रस्तुत करते हैं - "हमारी कुर्सी का काठ कड़ा है, कड़ा न होता तो हमारे बोझ को कैसे संभालता? और काठ नरम है, यदि नरम न होता तो कुल्हाड़ा उसे कैसे काट सकता था? इसलिए काठ कड़ा और नरम दोनों है।"
मार्क्स का विरोधी समागम किसी भी दार्शनिक को स्याद्वाद की याद दिलाए बिना न रहेगा। अन्य दर्शन चाहे एकमत न हों, पर जैन दर्शन इसका समर्थन अवश्य करता है कि एक ही वस्तु में अपेक्षा भेद से विभिन्न विरोधी स्वभावों की स्थिति है। जैन दर्शन का स्याद्वाद कहता है कि वस्तु में स्वद्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा से जिन धर्मों का अस्तित्व है, उन धर्मों का परद्रव्य, क्षेत्र, काल, और भाव की अपेक्षा से अस्तित्व नहीं है। इसी आशय को क्रमश: ‘स्यादस्ति' और 'स्यान्नास्ति' भंगों द्वारा दर्शाया गया है। जैन दर्शन नित्य, अनित्य, एक-अनेक, वाच्च, अवाच्य आदि दर्शनजगत् के गम्भीरतम प्रश्नों को स्याद्वाद के द्वारा ही हल करता है। मार्क्सवादियों की विरोधी समागमता के उदाहरण ऐसे लगते हैं, जैसे बड़ी खोज से पाए गये हैं। स्याद्वादियों की विवेचना में अनेक प्रकार के उदाहरणों की भरमार है। वहां ऐसी कोई वस्तु है ही नहीं जो विरोधी धर्मों की सहस्थिति का उदाहरण न बनती हो। एक रेखा छोटी की अपेक्षा बड़ी व अपने से बड़ी की अपेक्षा छोटी है। एक
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