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Multi-dimensional Application of Anekāntavāda
___ अर्थात् संसार परिभ्रमण के कारण रागादि जिसके क्षय हो चुके हैं उसे मैं प्रणाम करता हूँ चाहे वे ब्रह्मा हों, विष्णु हों शिव हो या जिन हों ।''६० (घ) मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अनेकान्तवाद की महत्ता -
अनेकांतदृष्टि का मनोवैज्ञानिक महत्त्व भी है। मानव-मन श्रद्धा और तर्क दोनों से युक्त है। किसी समय श्रद्धा का भाव प्रबल होता है तो किसी समय तर्क की प्रवृत्ति उग्र हो जाती है। श्रद्धा से आप्लावित जन तर्क या बुद्धि की अवहेलना कर देता है और तर्क का पक्षपाती श्रद्धा को केवल अंध परंपरा मान लेता है किंतु केवल श्रद्धा भाव से या केवल तर्क से किसी तथ्य का निर्णय करना कठिन है। श्रद्धा का अभिप्राय है- मानव के अर्जित ज्ञान के प्रति विश्वास तथा आस्था रखना। मानव जाति ने केवल इतना ही किया होता तो सभ्यता और संस्कृति का विकास उत्तरोत्तर न हुआ होता । दूसरी ओर केवल तर्क का क्षेत्र भी अत्यन्त सीमित है। वह प्रत्यके व्यक्ति की बौद्धिक शक्ति योग्यता और संस्कारों पर निर्भर है। मानव जाति के अर्जित ज्ञान विज्ञान पर आस्था रहकर ही तर्क के द्वारा आगे बढ़ा जा सकता है। अत: केवल श्रद्धा या केवल तर्क, जो ज्ञान-प्राप्ति के अधूरे साधन हैं, नितांत अपूर्ण हैं। इनका समन्वय ही मानव को समुन्नत कर सकता है। यह समन्वय अनेकांतदृष्टि से ही हो सकता है।''६१ (च) पारिवारिक जीवन में स्याद्वाद दृष्टि का उपयोग -
कौटुम्बिक क्षेत्र में इस पद्धति का उपयोग परस्पर कुटुम्बों में और कुटुम्ब के सदस्यों में संघर्ष को टालकर शांतिपूर्ण वातावरण का निर्माण करेगा। सामान्यतया पारिवारिक जीवन में संघर्ष के दो केन्द्र होते हैं- पिता पुत्र तथा सास बहू। इन दोनों विवादों में मूल कारण दोनों का दृष्टि भेद है। जब तक सहिष्णु दृष्टि और एक दूसरे की स्थिति को समझने का प्रयास अनेकांत पद्धति द्वारा नहीं किया जाता, तब तक संघर्ष समाप्त नहीं हो सकता। दूसरे शब्दों में यही एक दृष्टि है जिसके अभाव में लोकव्यवहार असंभव है। ६२ ।
अनेकांत दर्शन समन्वयवादी दर्शन है। अपेक्षा है, गंभीरता से उस पर विचार करने की ओर उसे जीवन-व्यवहार में साकार रूप देने की६३। अनेकांतदृष्टि केवल तत्त्व निर्णय में ही सहायक नहीं है यह वह दृष्टि है जिसके द्वारा मानव का जीवन शांत और सुखी हो सकता है। अनेकांत एवं स्याद्वाद के सिद्धांत दार्शनिक, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं पारिवारिक जीवन के विरोधों के समन्वय की एक ऐसी विधायक दृष्टि प्रस्तुत करते हैं, जिससे मानव जाति को संघर्षों के निराकरण में सहायता मिल सकती है। संक्षेप में अनेकांत विचार-पद्धति के व्यावहारिक क्षेत्र में तीन प्रमुख योगदान हैं
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