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अनेकान्तवाद की उपयोगिता
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(ख) राजनैतिक क्षेत्र में स्याद्वाद के सिद्धांत का उपयोग
अनेकांतवाद का सिद्धांत न केवल दार्शनिक अपितु राजनैतिक विवाद भी हल करता है। आज का राजनैतिक जगत् भी वैचारिक संकुलता से परिपूर्ण है। पूँजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, फासीवाद, नाजीवाद, आज अनेक राजनैतिक विचारधाराएँ तथा राजतंत्र, कुलतंत्र, अधिनायक तंत्र आदि अनेकानेक शासन प्रणालियाँ वर्तमान में प्रचलित हैं। मात्र इतना ही नहीं उनमें से प्रत्येक एक दूसरे की समाप्ति के लिये प्रयत्नशील हैं। विश्व के राष्ट्र, खेमों में बटे हुए हैं और प्रत्येक खेमे का अग्रणी राष्ट्र अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने हेतु दूसरे के विनाश में तत्पर हैं। मुख्य बात यह है कि आज का राजनैतिक संघर्ष आर्थिक हितों का संघर्ष न होकर वैचारिकता का संघर्ष है।
आज के राजनैतिक जीवन में स्याद्वाद के दो व्यावहारिक फलित वैचारिक सहिष्णुता और समन्वय अत्यन्त उपादेय हैं। मानव जाति ने राजनैतिक जगत् में, राजतंत्र की जो लम्बी यात्रा तय की है उसकी सार्थकता स्याद्वाद दृष्टि को अपनाने में ही है। विरोधी पक्ष द्वारा की जानेवाली आलोचना के प्रति सहिष्ण होकर उसके द्वारा अपने दोषों को समझना और उन्हें दूर करने का प्रयास करना आज के राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विपक्ष की धारणाओं में भी सत्यता हो सकती है और सबल विरोधी दल की उपस्थिति से हमें अपने दोषों के निराकरण का अच्छा अवसर मिलता है। इस विचार दृष्टि और सहिष्णु भावना में ही प्रजातंत्र का भविष्य उज्ज्वल रह सकता है। राजनैतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातन्त्र (Parliamentary Democracy) वस्तुत: राजनैतिक स्याद्वाद है। इस परंपरा में बहुमत दल द्वारा गठित सरकार अल्पमत दल को अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार मान्य करती है और यथासंभव उससे लाभ भी उठाती है। दार्शनिक क्षेत्र में जहाँ भारत स्याद्वाद का सर्जक है, वहीं वह राजनैतिक क्षेत्र में ससंदीय प्रजातंत्र का समर्थक भी है। अत: आज स्याद्वाद सिद्धांत को व्यावहारिक क्षेत्र में उपयोग करने का दायित्व भारतीय राजनीतिज्ञों पर है। उसी प्रकार हमें यह भी समझना है कि राज्य व्यवस्था का मूल लक्ष्य जन कल्याण है। अतः जन कल्याण को दृष्टि में रखते हुए विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं के मध्य एक सांग संतुलन स्थापित करना है। आवश्यकता सैद्धांतिक विवादों की नहीं अपितु जनहित के संरक्षण एवं मानव की पाशविक वृत्तियों के नियंत्रण की है। (ग) अनेकांत धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में
__ सभी धर्म-साधना पद्धतियों का मुख्य लक्ष्य, राग, आसक्ति, अहं एवं तृष्णा की समाप्ति रहा है। जैन धर्म की साधना का लक्ष्य वीतरागता है, तो बौद्ध धर्म की साधना का लक्ष्य वीततृष्ण होना माना गया है। वेदांत में अहं और आसक्ति से ऊपर
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