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अनेकान्तः स्वरूप और विश्लेषण
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है, अपरिग्रह है, सदाचार है, सम-व्यवहार है, समभाव है, नैतिकता से जुड़े हुए समाज के व्यक्ति अनैतिक व्यवहार पनपने ही नहीं देते हैं। जहाँ दुष्प्रवृत्तियों ने जन्म लिया वहाँ वर्ग संघर्ष ने जन्म लिया फलत: सामाजिक शान्ति भंग हुई। तब उस समय एकता के सूत्र का अभ्युदय हुआ, उससे स्वार्थ पर अंकुश लगाया गया और दुर्व्यवस्था को जड़ से समाप्त करने का संकल्प दुहराया गया ।
__ अध्यात्म के ज्ञान-विज्ञान से मानवीय मूल्यों की स्थापना हुई। विश्व को नया नेतृत्व मिला। परस्पर उपकार करने की कला जागृत हुई, लोक कल्याणकारी दृष्टि ने नवीन समाज संरचना का संकल्प दुहराया। अर्थ-व्यवस्था आर्थिक नीति , के लिए सम विभाजन की नीति अपनाई गयी। बहुत प्रयास हुआ मानवीय समस्याओं के निवारण के लिए और उसी के फलस्वरूप आज हम संघर्षों के बीच भी अनेकान्तवाद की दृष्टि को लिए हए अब भी समाज में अपने मूल्यों के कारण जाने-पहचाने जा रहे हैं।
इस तरह के निरूपण से सामाजिक परिप्रेक्ष्य के उन संदर्भो को जीवन्त बनाया जा सकता है, जो समाज, राष्ट्र के लिए सर्वोपरि हों । अनेकान्त की दृष्टि समग्र जीवन के रहस्यों का साक्षात्कार कराने वाली है। वह मानस के क्षेत्र को छूती है, मन के विचारों में सद्भावना का संचार करती है, प्राणिमात्र के प्रति मंगल भाव इसके दिव्य-आलोक में है, इसका प्रतिफल कल्याणकारी है।
सामाजिक चेतना, राजनैतिक सुधार, पुनरुत्थान, पुनर्गठन, पुनर्जागरण एवं हमारी सभ्यता-संस्कृति के लिए अनेकान्तवाद संजीवनी बूटी है। आराजकता का बदलाव, विचारों के संघर्ष, आपसी मतभेद, व्यक्ति-व्यक्ति का मनमुटाव, जातिगत विलगाव , सामुदायिक फूट, राष्ट्र-राष्ट्र की विनाशकारी लीला के लिए अनेकान्तवाद अचूक दवा के सदृश है। मानव कल्याण की भावना का मार्ग बतलाने वाला यह सिद्धान्त पारस्परिक दुराग्रह के बीज नहीं डालने देता है। राष्ट्रीय नीति हो या हो अन्तर्राष्ट्रीय नीति सभी को सर्वमान्य नीतियों पर ही चलने का आग्रह रखता है।
जहाँ यह धार्मिक क्षेत्र की विषमता को दूर कर समता मार्ग पर ले जाता है, वहीं यह राजनीति आर्थिक, सामाजिक आदि सभी क्षेत्रों में सबके लिए एक ही मार्ग प्रशस्त करता है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व विश्व के साथ आत्मीयता स्थापित करे, इससे समूचे समाज के साथ विश्व में भी, वसुधैव कुटुम्बकम् का सिद्धान्त चरितार्थ होगा। अनेकान्तवाद की मंगल कामना है
“समया सव्वभूएसु सत्तु-मित्तेसु वा जगे।" विश्व के सभी शत्रु-मित्रों एवं प्राणिमात्र में समभाव हो ।
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